भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मादाम / साहिर लुधियानवी

262 bytes removed, 04:22, 9 मार्च 2012
<poem>
आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम?
 
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
 
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
 
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे
  नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला<ref>प्रकाश</ref>
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
 मुफ़लिसी हिस्स-ए-लताफ़त <ref>रुसवाई</ref> को मिटा देती है 
भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती
 
 
लोग कहते हैं तो, लोगों पे ताज्जुब कैसा
 
सच तो कहते हैं कि, नादारों की इज़्ज़त कैसी
 
लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं
 
आप भी कहिए ग़रीबो में शराफ़त कैसी
 
 
नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा
 जब हमें ज़िस्त ज़ीस्त<ref>ज़िन्दगी</ref> के अदवार परखने होंगे 
अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम
हमको ताज़ीम<ref>महानता, बड़प्पन</ref> के मे'आर<ref>मानक, स्टैंडर्ड</ref> परखने होंगे
हमको ताज़ीम के मे'आर परखने होंगे   हम ने हर दौर में तज़लील <ref>अनादर करना</ref> सही है लेकिन हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िआ <ref>प्रकाश</ref> बक़्शी है 
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
 
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बक़्शी है
  लेकिन इन तल्ख मुबाहिस <ref>विवाद</ref> से भला क्या हासिल? 
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
 
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
 
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे
 
वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
 
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ
 
</poem>
 जिला=प्रकाश; लताफ़त=रुसवाई; तज़लील= अनादर करना; ज़िया=प्रकाश; तल्ख़=कड़वी; मुबाहिस=विवादअज़मत - महानता, बड़प्पन । त'आज़ीम का भी यही अर्थ होता है ।ज़ीस्त -ज़िन्दगी । सरमाया - दौलत, मैआर (मयार) - मानक, स्टैंडर्ड ।{{KKMeaning}}