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"अपना गाँव-समाज / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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बड़े चाव से बतियाता था | बड़े चाव से बतियाता था | ||
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मिलना-जुलना आज | मिलना-जुलना आज | ||
− | बीन-बान लाता था लकड़ी | + | बीन-बान लाता था |
+ | लकड़ी | ||
अपना दाऊ बागों से | अपना दाऊ बागों से | ||
− | धर अलाव | + | धर अलाव |
− | + | भर देता था, फिर | |
+ | बच्चों को | ||
+ | अनुरागों से | ||
− | + | छोट, बड़ों से | |
− | + | गपियाते थे | |
+ | आँखिन भरे लिहाज | ||
− | नैहर से जब आते मामा | + | नैहर से जब आते |
− | + | मामा | |
− | फूले नहीं समाते | + | दौड़े-दौड़े सब आते |
+ | फूले नहीं समाते | ||
+ | मिल कर | ||
घण्टों-घण्टों बतियाते | घण्टों-घण्टों बतियाते | ||
− | भेंटें होतीं, हँसना होता | + | भेंटें होतीं, |
+ | हँसना होता | ||
खुलते थे कुछ राज | खुलते थे कुछ राज | ||
− | जब जाता था घर से कोई | + | जब जाता था |
− | + | घर से कोई | |
− | गाँव किनारे तक सब | + | पीछे-पीछे पग चलते |
− | + | गाँव किनारे तक | |
+ | आकर सब | ||
+ | अपनी नम आँखें मलते | ||
− | + | तोड़ दिया है किसने | |
− | + | आपसदारी का | |
+ | वह साज | ||
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18:42, 11 मार्च 2012 के समय का अवतरण
बड़े चाव से बतियाता था
अपना गाँव-समाज
छोड़ दिया है चौपालों ने
मिलना-जुलना आज
बीन-बान लाता था
लकड़ी
अपना दाऊ बागों से
धर अलाव
भर देता था, फिर
बच्चों को
अनुरागों से
छोट, बड़ों से
गपियाते थे
आँखिन भरे लिहाज
नैहर से जब आते
मामा
दौड़े-दौड़े सब आते
फूले नहीं समाते
मिल कर
घण्टों-घण्टों बतियाते
भेंटें होतीं,
हँसना होता
खुलते थे कुछ राज
जब जाता था
घर से कोई
पीछे-पीछे पग चलते
गाँव किनारे तक
आकर सब
अपनी नम आँखें मलते
तोड़ दिया है किसने
आपसदारी का
वह साज