भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रयास / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<Poem>
 
<Poem>
मेरा प्रयास बन नदिया
+
मेरी कोशिश
जग में सदा बहूँ मैं
+
सूखी नदिया में-
 +
बन नीर बहूँ मैं
  
चल सकूँ उस राह पर भी
+
चल पाऊँ
जो सूखकर पथरा गई हो
+
उन राहों पर भी
तोड़ दूँ चट्टान को भी
+
जिनमें कंटक छहरे
जो रास्ते में आ गई हो
+
तोड़ सकूँ चट्टान को भी
 +
गड़ी हुई जो गहरे
  
धीर धरे मन जोश भरे
+
हर राही
अपनी राह गहूँ मैं
+
मंजिल पा जाए
 +
ऐसी राह बनू मैं  
  
थके हुए हर प्यासे को
+
थके हुए को
चलकर अपना मन दूँ, जल दूँ
+
हर प्यासे को
टूटे-सूखे पौधों को
+
चलकर जीवन-जल दूँ
हरा-भरा नव-जीवन-दल दूँ
+
दबे और कुचले पौधों को
 +
हरा-भरा नव-दल दूँ
  
हर विपदा में, चिन्ता में
+
हर विपदा में-
सबके साथ रहूँ मैं
+
चिन्ता में
 +
सबके साथ दहूँ मैं
  
आ खूब नहाएँ चिड़िया-
+
जहाँ-जहाँ पर
बच्चे, माँझी नाव चलाएँ
+
रेत अड़ी है
ले जाएँ घर-क्यारी में
+
मेरी धार बहाए
अपनी फसलों को नहलाएँ
+
नाव चले तो
 +
मुझ पर ऐसी
 +
दोनों तीर मिलाए
  
आऊँ काम सभी के बस
+
ऊसर-बंजर तक
प्रभु से यही कहूँ मैं
+
जा-जाकर
 +
सबके चरण गहूँ मैं
 
</poem>
 
</poem>

19:40, 11 मार्च 2012 का अवतरण

मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं

चल पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ चट्टान को भी
गड़ी हुई जो गहरे

हर राही
मंजिल पा जाए
ऐसी राह बनू मैं

थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा नव-दल दूँ

हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं

जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए
नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए

ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
सबके चरण गहूँ मैं