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दिनभर दिन भर फ़ोन धरे कानों परये जाने चिड़ियाँ बैठीं क्या-क्या बतियाएऐसी चहकी चिड़िया घर कीगूँजें दूर देश तक जाएँबतियाएँ
बात-बात पर प्यार जताएमें खुश हो जाना जरा देर में खुद ख़ुद चिढ़ जाएजाना अपनी -उनकी, उनकी -अपनीजाने कितनी कथा सुनाएसुनाना
उतने बोल सुनाती केवलजितना दिनभर एक दिवस में जी पाएकट जाती हैं कई साल की दिनचर्याएं
बातें करती घर आँगन की
करती अपने सूने-भुतहे पिछवारे कीक्या खाया , क्या पहना तूनेपाया जग में होती बात थके-हारे बातें होतीं उजयारे की
उतनी ही बातें करती बसकभी-कभी होतीं कनबतियां जितनी यादों में आ पाएआँखें लज्जा से भर जाएँ
ढीली-अण्टी कभी न करती
‘मिस कॉलों’ से काम चलाएचलाना ‘कॉल’ उधर से आ जाने परकठिन समय है, सस्ते में ही तरह-तरह की बात बनाएउँगली के बल उसे नचाना
‘टाइम पास’ करने को अपनाकिया करती हैं नई कथा के बिम्ब रचाएरच कर कल्पित गूढ़ कथाएँ
इसे फँसाती, उसे रिझातीजाल तोड़ कर कैसे-कैसे झीनेखोज-झीने जाल बिछातीखोज कर दाना-पानी मीठे बोलों से भरमाकरधीरे-धीरे चिड़ियारानी अंधियारेपन में धकियातीहुई एक दिन बड़ी सयानी
जिसको चाहे उसे उठातीफुर्र हो गईं सारी बातें मनमाफ़िक सपने दिखलाएघेर रहीं भावी चिंताएँ
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