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"क्या वो लम्हा ठहर गया होगा.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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जब मिटा कर नगर गया होगा
 
जब मिटा कर नगर गया होगा
फिर वो लम्हा ठहर गया होगा
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क्या वो लम्हा ठहर गया होगा
 
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है वो हैवान उसको डर कैसा
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आइने की उसे न थी आदत
 
खुद से मिलते ही डर गया होगा
 
खुद से मिलते ही डर गया होगा
  
जिस सवाली के हाथ खाली थे
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वह जो बस जिस्म का सवाली था
वो सवाली किधर गया होगा
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उसका दामन तो भर गया होगा
  
अब न ढूंढो वो सुबह का भूला
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अब न ढूंढो कि सुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा  
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शाम होते ही घर गया होगा
  
 
खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
 
खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म-ए-दिल कोई भर गया होगा
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ज़ख़्म था दिल में, भर गया होगा
 
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15:54, 12 मार्च 2012 का अवतरण

जब मिटा कर नगर गया होगा
क्या वो लम्हा ठहर गया होगा
     
आइने की उसे न थी आदत
खुद से मिलते ही डर गया होगा

वह जो बस जिस्म का सवाली था
उसका दामन तो भर गया होगा

अब न ढूंढो कि सुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा

खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म था दिल में, भर गया होगा