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"शहर कमाकर/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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'''शहर कमाकर'''
 
 
शहर कमाकर जब हम लौटे   
 
शहर कमाकर जब हम लौटे   
भैया अपने गांव
+
भैया अपने गाँव
बदली बदली हमें दिखायी
+
बदली बदली हमें दिखाई
दी बरगद की छांव।
+
दी बरगद की छाँव ।
भूले लोय कबड्डी सिर पर  
+
 +
भूले लोय,कबड्डी सिर पर  
 
चढ़ा क्रिकेट का भूत  
 
चढ़ा क्रिकेट का भूत  
दिन दिन घूम रहे हाथों में  
+
दिन-दिन घूम रहे हाथों में  
 
बल्ला थामे पूत  
 
बल्ला थामे पूत  
 
राम लक्ष्मण में प्रधान पद  
 
राम लक्ष्मण में प्रधान पद  
का हो रहा चुनाव।
+
का हो रहा चुनाव ।
भूल गये हुक्के की गुड़गुड़  
+
 
बढ़ा चिलम का जोर
+
भूल गए हुक्के की गुड़गुड़  
बलदाऊ पी पी शराब की  
+
बढ़ा चिलम का ज़ोर
बोतल भे कमजोर,  
+
बलदाऊ पी-पी शराब की  
पूरब टोला पश्चिम टोला  
+
बोतल भे कमज़ोर,  
में है बड़ा तनाव।
+
पूरब टोला-पश्चिम टोला
 +
में है बड़ा तनाव ।
 +
 
 
फागुन आया चला गया पर  
 
फागुन आया चला गया पर  
बजीं न झांझें ढोल।
+
बजीं न झांझें-ढोल ।
हलो हाय के आगे फीके   
+
हलो-हाय के आगे फीके   
पांय लगूं के बोल  
+
पाँय लगूँ के बोल  
 
एक दूसरे का हर कोई  
 
एक दूसरे का हर कोई  
काट रहा है पांव।
+
काट रहा है पाँव ।
बदली बदली हमें दिखायी
+
दी बरगद की छांव।
+
बदली-बदली हमें दिखाई
 +
दी बरगद की छाँव ।
 
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22:22, 13 मार्च 2012 के समय का अवतरण

शहर कमाकर जब हम लौटे
भैया अपने गाँव
बदली बदली हमें दिखाई
दी बरगद की छाँव ।
 
भूले लोय,कबड्डी सिर पर
चढ़ा क्रिकेट का भूत
दिन-दिन घूम रहे हाथों में
बल्ला थामे पूत
राम लक्ष्मण में प्रधान पद
का हो रहा चुनाव ।

भूल गए हुक्के की गुड़गुड़
बढ़ा चिलम का ज़ोर
बलदाऊ पी-पी शराब की
बोतल भे कमज़ोर,
पूरब टोला-पश्चिम टोला
में है बड़ा तनाव ।

फागुन आया चला गया पर
बजीं न झांझें-ढोल ।
हलो-हाय के आगे फीके
पाँय लगूँ के बोल
एक दूसरे का हर कोई
काट रहा है पाँव ।
 
बदली-बदली हमें दिखाई
दी बरगद की छाँव ।