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"कैसे नीम जिये / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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थे दिन दिन भर लोग | थे दिन दिन भर लोग | ||
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यह संक्रामक रोग | यह संक्रामक रोग | ||
इनके हाथ कुल्हाड़ी है वो | इनके हाथ कुल्हाड़ी है वो | ||
आरा हाथ लिये | आरा हाथ लिये | ||
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अपनी अपनी फिकर सभी को | अपनी अपनी फिकर सभी को | ||
करे फैसला कौन | करे फैसला कौन | ||
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आगे खुदीं खाईयाँ पीछे | आगे खुदीं खाईयाँ पीछे | ||
गहरे खुदे कुँये | गहरे खुदे कुँये | ||
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जिनकी शीतल छाया कल तक | जिनकी शीतल छाया कल तक | ||
लगती थी अभिराम | लगती थी अभिराम | ||
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यहाँ वहाँ हर जगह दिख रहे | यहाँ वहाँ हर जगह दिख रहे | ||
फैले हुये धुँये | फैले हुये धुँये | ||
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तनातनी के इस मौसम में | तनातनी के इस मौसम में | ||
कैसे नीम जिये? | कैसे नीम जिये? | ||
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22:56, 13 मार्च 2012 के समय का अवतरण
कैसे नीम जिये ?
पीपल बरगद ने आपस में
झगड़े रोज किये
तनातनी के इस मौसम में
कैसे नीम जिये?
जिनकी पूजा कल तक करते
थे दिन दिन भर लोग
जाने कैसे उन्हें लग गया
यह संक्रामक रोग
इनके हाथ कुल्हाड़ी है वो
आरा हाथ लिये
अपनी अपनी फिकर सभी को
करे फैसला कौन
सारा जंगल गुमसुम बैठा
देख रहा हो मौन
आगे खुदीं खाईयाँ पीछे
गहरे खुदे कुँये
जिनकी शीतल छाया कल तक
लगती थी अभिराम
आग उगलना ही बस उनका
एक रह गया काम
यहाँ वहाँ हर जगह दिख रहे
फैले हुये धुँये
तनातनी के इस मौसम में
कैसे नीम जिये?