"आर्तनाद / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
छो |
छो |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
| | | | ||
| | | | ||
+ | }} | ||
{{KKCatRajasthan}} | {{KKCatRajasthan}} | ||
<poem> | <poem> |
16:46, 16 मार्च 2012 का अवतरण
क्या कैसे हो विनती, ना जानू भगवान,
जानि न पाया आज तक, होता क्या है ज्ञान |
होता क्या है ज्ञान, ध्यान लग जाता कैसे,
भक्ति क्या है करूँ, भरम भग जाता कैसे |
शरणागत हूं रामजी, संत चरण का दास,
शिवदीन दीन के हृदय में, कर दो प्रेम प्रकाश |
राम गुण गायरे ||
==========================================
बडे़-बड़े पापियों को, त्यारे तुम दीना नाथ,
बारी ये हमारी प्रभु, भूल हूं न जाइये।
निपट दीन हीन मूर्ख, मैं हूं मतिमंद मूढ़,
शरण जानी दर्शन हित, शीघ्र प्रभु आइये।
प्रेमी करतार राम, पूर्ण करो काम मेरा,
भक्ति रस अमृत मोहीं, घोर-घोर पाइये।
शिवदीन दीन तेरा दास, मेरे उर प्रकाश करो,
अर्जुन को दियो ज्ञान, मोकूं समझाइये।
=================================================
बडी-बडी नदियां है, बडे-बडे पहार खडे,
बडे-बडे खड्डे खुदे, वामें गिर जाउं मैं।
लोभ रूप नदी बहत, काम को पहार जानो,
क्रोध रूप कूप घोर, कैसे बच पाउ मैं।
जंगल विकट मोहमूल, मुश्किल से मिलत मग,
तुम्ही कहो कैसे फिर, तेरे को रिझांउ मैं।
कहता शिवदीन राम, राम नाम लेवूं कैसे,
कैसे नाथ भक्ति बिन, तेरे द्वार आउं मैं।