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"गौरैया / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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दाना भी है, पानी भी है
 
दाना भी है, पानी भी है
 
मीठे बोल, रवानी भी है
 
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में दुख-ही-दुख
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पराधीनता में सुख कैसा?
 
बात सभी ने जानी भी है
 
बात सभी ने जानी भी है
  

08:25, 18 मार्च 2012 का अवतरण


नहीं दीखती अब गौरैया
गाँव-गली-घर या शहरों में

छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर, पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए

सुधिया कभी दिखे ना कोई
आते-जाते इन बहरों में

सहमी-सी बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
उड़ जाने की आस लगाए

गोते खाती है छिन-पलछिन
अंदर-बाहर की लहरों में

दाना भी है, पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में सुख कैसा?
बात सभी ने जानी भी है

सभी यहाँ चुप राजा-रानी
रखकर उसको पहरों में!