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20:56, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण
राग अहीरी
साँवरे बलि-बलि बाल-गोबिंद ।
अति सुख पूरन परमानंद ॥
तीनि पैड जाके धरनि न आवै ।
ताहि जसोदा चलन सिखावै ॥
जाकी चितवनि काल डराई ।
ताहि महरि कर-लकुटि दिखाई ॥
जाकौ नाम कोटि भ्रम टारै ।
तापर राई-लोन उतारै ॥
सेवक सूर कहा कहि गावै ।
कृपा भई जो भक्तिहिं पावै ॥
भावार्थ :--श्यामसुन्दर ! बालगोविन्द! तुम पर बार-बार बलिहारी । तुम अत्यन्त सुखदायी तथा पूर्ण परमानन्दरूप हो । (देखो तो) पूरी पृथ्वी (वामनावतार में) जिसके तीन पद भी नहीं हुई, उसी को मैया यशोदा चलना सिखला रही हैं, जिसके देखने से काल भी भयभीत हो जाता है, व्रजरानी ने हाथ में छड़ी लेकर उसे दिखलाया (डाँटा) जिसका नाम ही करोड़ों भ्रमों को दूर कर देता है, (नजर न लगे, इसलिये) मैया उस पर राई-नमक उतारती हैं । यह सेवक सूरदास आपके गुणों का कैसे वर्णन करे ? आपकी भक्ति मुझे यदि मिल जाय तो यह आपकी(महती) कृपा हुई समझूँगा । शिव, सनकादि ऋषि शुकदेवादि परमहंस तथा ब्रह्मादि देवता ढूँढ़कर भी जिनका (जिनकी महिमा का) पार नहीं पाते,मैया उन्हीं को गोदमें लेकर हिलाती (झुलाती) है और तोतली वाणी बुलवाती है । देवता, मनुष्य, किन्नर तथा मुनिगण- सब (इस लीला को देखकर) मुग्ध हो रहे हैं, सूर्य (लीला-दर्शनसे मुग्ध होकर) अपने रथ को आगे नहीं चलाते हैं, व्रज की सभी युवतियाँ (इस लीलापर) मुग्ध हो रही हैं । सूरदास (इन्हीं श्याम का) सुयश गा रहा है ।