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"समय / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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सारे धड़ में उभरी साँटें
+
सारे धड़ में  
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उभरी साँटें
 
बहुत दर्द है गुड़ने का
 
बहुत दर्द है गुड़ने का
  
पैनी धारों वाले मंजे
+
पैनी धारों वाले  
 +
मंजे
 
छुप बैठे डोर-पतंगो में
 
छुप बैठे डोर-पतंगो में
उड़ता हुआ और को देखा
+
उड़ता हुआ  
 +
और को देखा
 
जा काटा उनको जंगों में
 
जा काटा उनको जंगों में
  
हो स्वच्छंद करें मनमानी
+
हो स्वच्छंद  
 +
करें मनमानी
 
मन सिंहासन चढ़ने का
 
मन सिंहासन चढ़ने का
  
ख़ैर नहीं कच्चे धागों की
+
ख़ैर नहीं  
 +
कच्चे धागों की
 
जिनकी नाज़ुक उधड़ी लड़ियाँ
 
जिनकी नाज़ुक उधड़ी लड़ियाँ
कटरीले झुरमुट में फँसकर
+
कटरीले झुरमुट में  
 +
फँसकर
 
टूट रही हैं जिनकी कड़ियाँ
 
टूट रही हैं जिनकी कड़ियाँ
  
बहुत बिखरना हुआ आज तक
+
बहुत बिखरना हुआ  
 +
आज तक
 
आया मौक़ा जुड़ने का
 
आया मौक़ा जुड़ने का
  
अवरोधों से टकराने का
+
अवरोधों से  
 +
टकराने का
 
जो ज़ज्बा रहता था मन में
 
जो ज़ज्बा रहता था मन में
चुप्पी मारे सिकुड़ा बैठा
+
चुप्पी मारे  
 +
क्यों बैठा है
 
जाके किसी अजाने वन में
 
जाके किसी अजाने वन में
  
किसी तरह उकसाओ इसको
+
किसी तरह  
 +
उकसाओ इसको
 
समय आ गया भिड़ने का!
 
समय आ गया भिड़ने का!
 
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14:11, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण

सारे धड़ में
उभरी साँटें
बहुत दर्द है गुड़ने का

पैनी धारों वाले
मंजे
छुप बैठे डोर-पतंगो में
उड़ता हुआ
और को देखा
जा काटा उनको जंगों में

हो स्वच्छंद
करें मनमानी
मन सिंहासन चढ़ने का

ख़ैर नहीं
कच्चे धागों की
जिनकी नाज़ुक उधड़ी लड़ियाँ
कटरीले झुरमुट में
फँसकर
टूट रही हैं जिनकी कड़ियाँ

बहुत बिखरना हुआ
आज तक
आया मौक़ा जुड़ने का

अवरोधों से
टकराने का
जो ज़ज्बा रहता था मन में
चुप्पी मारे
क्यों बैठा है
जाके किसी अजाने वन में

किसी तरह
उकसाओ इसको
समय आ गया भिड़ने का!