भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गौरैया / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | |||
− | |||
− | छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में | + | नहीं दीखती |
+ | अब गौरैया | ||
+ | गाँव-गली-घर या शहरों में | ||
+ | |||
+ | छत-मुँडेर पर, | ||
+ | गाँव-खेत में | ||
चिड़ीमार ने जाल बिछाए | चिड़ीमार ने जाल बिछाए | ||
− | पकड़-पकड़ कर पिंजड़ों में धर | + | पकड़-पकड़ कर, |
+ | पिंजड़ों में धर | ||
चिड़ियाघर में उसको लाए | चिड़ियाघर में उसको लाए | ||
− | + | सुधिया कभी | |
− | + | दिखे ना कोई | |
+ | बुत-से लगते चेहरों में | ||
− | + | सहमी-सी | |
+ | बैठी गौरैया | ||
टूटे पर अपने सहलाए | टूटे पर अपने सहलाए | ||
− | दम घुटता है साँसें दुखतीं | + | दम घुटता है |
− | + | साँसें दुखतीं | |
+ | उड़ जाने की आस जगाए | ||
− | गोते खाती | + | गोते खाती है |
− | अंदर-बाहर लहरों में | + | छिन-पलछिन |
+ | अंदर-बाहर की लहरों में | ||
− | दाना भी है, पानी भी है | + | दाना भी है, |
+ | पानी भी है | ||
मीठे बोल, रवानी भी है | मीठे बोल, रवानी भी है | ||
− | पराधीनता में | + | पराधीनता में |
+ | सुख कैसा? | ||
बात सभी ने जानी भी है | बात सभी ने जानी भी है | ||
− | + | राजा-रानी, | |
− | रखकर उसको पहरों में | + | सभी यहाँ चुप |
+ | रखकर उसको पहरों में! | ||
</poem> | </poem> |
13:29, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण
नहीं दीखती
अब गौरैया
गाँव-गली-घर या शहरों में
छत-मुँडेर पर,
गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर,
पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए
सुधिया कभी
दिखे ना कोई
बुत-से लगते चेहरों में
सहमी-सी
बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है
साँसें दुखतीं
उड़ जाने की आस जगाए
गोते खाती है
छिन-पलछिन
अंदर-बाहर की लहरों में
दाना भी है,
पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में
सुख कैसा?
बात सभी ने जानी भी है
राजा-रानी,
सभी यहाँ चुप
रखकर उसको पहरों में!