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"नर्म अहसासों के साथ क्रान्ति की आवाज / मजाज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई, | खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई, | ||
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− | मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब खुद, | + | </poem> |
− | उनकी यह इल्तिजा तकाजा करे कोई। | + | 1.जौके-नजारा - देखने का शौक |
− | + | 2.आमादे-फस्ले-बहार - वसन्त ऋतु का आगमन | |
− | 1.नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट | + | 3.नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट 4.इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त |
− | + | 5.तकाजा - माँग, फर्माइश | |
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19:53, 21 मार्च 2012 के समय का अवतरण
(1)
इश्क का जौके-नजारा1 मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।
(2)
कहते हैं मौत से बदतर है इन्तिजार,
मेरी तमाम उम्र कटी इन्तिजार में।
(3)
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी,
कुछ मुझे भी खराब होना था।
(4)
खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई,
यकीन आमादे -फस्ले-बहार2 कम न हुआ।
(5)
मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब3 खुद,
उनकी यह इल्तिजा4 तकाजा5 करे कोई।
1.जौके-नजारा - देखने का शौक 2.आमादे-फस्ले-बहार - वसन्त ऋतु का आगमन 3.नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट 4.इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त 5.तकाजा - माँग, फर्माइश