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"बाल गुपाल ! खेलौ मेरे तात / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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लोटत सूर स्याम पुहुमी पर, चारि पदारथ जाकैं हाथ ॥<br><br>
 
लोटत सूर स्याम पुहुमी पर, चारि पदारथ जाकैं हाथ ॥<br><br>
  
भावार्थ :-- `मेरे लाल! बालगोपाल! तुम खेलो । मैं तुम्हारे कमलमुखपर बार-बार बलिहारी जाऊँ, तोतली वाणीसे अमृतके समान मधुर बातें कहो' (किंतु) श्रीनन्दनन्दन ने दोनों हाथोंसे (दहीमथनेका) मटका पकड़ रखा है, (मटकेसे दही मथनेके कारण) दहीकीबूँदें छिटक-छिटककर पर्याप्त मात्रामें उनके शरीरपर गिर रही हैं; उनके सुन्दर श्यामल अंगोंपर वे ऐसी शोभा देती हैं मानो नीलमके ऊपर गजमुक्ता शोभित हों । जगतके जीवनस्वरूप प्रभु प्रातः उठकर मातासे निहोरा करते हैं कि `मुझे माखन-रोटी दे।'सूरदासजी कहते हैं कि (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ जिनके हाथमें हैं, वे ही श्यामसुन्दर (माखन-रोटीके लिये मचलते) पृथ्वीपर लोट रहे हैं ।
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भावार्थ :-- `मेरे लाल! बालगोपाल! तुम खेलो । मैं तुम्हारे कमलमुख पर बार-बार बलिहारी जाऊँ, तोतली वाणी से अमृत के समान मधुर बातें कहो' (किंतु) श्रीनन्दनन्दन ने दोनों हाथों से (दही मथने का) मटका पकड़ रखा है, (मटके से दही मथने के कारण) दही की बूँदें छिटक-छिटक कर पर्याप्त मात्रा में उनके शरीर पर गिर रही हैं; उनके सुन्दर श्यामल अंगों पर वे ऐसी शोभा देती हैं मानो नीलम के ऊपर गजमुक्ता शोभित हों । जगत के जीवनस्वरूप प्रभु प्रातः उठकर माता से निहोरा करते हैं कि `मुझे माखन-रोटी दे।'सूरदास जी कहते हैं कि (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ जिनके हाथ में हैं, वे ही श्यामसुन्दर (माखन-रोटी के लिये मचलते) पृथ्वी पर लोट रहे हैं ।

22:45, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

राग सारंग

बाल गुपाल ! खेलौ मेरे तात ।
बलि-बलि जाउँ मुखारबिंदकी, अमिय-बचन बोलौ तुतरात ॥
दुहुँ कर माट गह्यौ नँदनंदन, छिटकि बूँद-दधि परत अघात ।
मानौ गज-मुक्ता मरकत पर , सोभित सुभग साँवरे गात ॥
जननी पै माँगत जग-जीवन, दै माखन-रोटी उठि प्रात ।
लोटत सूर स्याम पुहुमी पर, चारि पदारथ जाकैं हाथ ॥

भावार्थ :-- `मेरे लाल! बालगोपाल! तुम खेलो । मैं तुम्हारे कमलमुख पर बार-बार बलिहारी जाऊँ, तोतली वाणी से अमृत के समान मधुर बातें कहो' (किंतु) श्रीनन्दनन्दन ने दोनों हाथों से (दही मथने का) मटका पकड़ रखा है, (मटके से दही मथने के कारण) दही की बूँदें छिटक-छिटक कर पर्याप्त मात्रा में उनके शरीर पर गिर रही हैं; उनके सुन्दर श्यामल अंगों पर वे ऐसी शोभा देती हैं मानो नीलम के ऊपर गजमुक्ता शोभित हों । जगत के जीवनस्वरूप प्रभु प्रातः उठकर माता से निहोरा करते हैं कि `मुझे माखन-रोटी दे।'सूरदास जी कहते हैं कि (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ जिनके हाथ में हैं, वे ही श्यामसुन्दर (माखन-रोटी के लिये मचलते) पृथ्वी पर लोट रहे हैं ।