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"गोपालराइ दधि माँगत अरु रोटी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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सूरदास कौ ठाकुर ठाढ़ौ, हाथ लकुटिया छोटी ॥<br><br>
 
सूरदास कौ ठाकुर ठाढ़ौ, हाथ लकुटिया छोटी ॥<br><br>
  
गोपालराय दही और रोटी माँग रहे हैं । (वे कहते हैं-) `मैया। अच्छी पकीहुई और खूब कोमल रोटी मुझे मक्खनके साथ दे ।' (माता कहती हैं -)`मेरे मोहन ! तुम आँगन में लोटकर मचलते क्यों हो, यह बुरा स्वभाव छोड़ दो ।जो इच्छा हो वह तुरंत लो।' निहोरा करके (माताने) कलेऊ दिया और फिर मुखतथा अलकोंमें तेल लगाया । सूरदासजी कहते हैं कि अब (कलेऊ करके) हाथमें छोटी-सी छड़ी लेकर ये मेरे स्वामी खड़े हैं ।
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गोपालराय दही और रोटी माँग रहे हैं । (वे कहते हैं-) `मैया। अच्छी पकी हुई और खूब कोमल रोटी मुझे मक्खन के साथ दे ।' (माता कहती हैं -)`मेरे मोहन ! तुम आँगन में लोटकर मचलते क्यों हो, यह बुरा स्वभाव छोड़ दो ।जो इच्छा हो वह तुरंत लो।' निहोरा करके (माताने) कलेऊ दिया और फिर मुख तथा अलकों में तेल लगाया । सूरदास जी कहते हैं कि अब (कलेऊ करके) हाथ में छोटी-सी छड़ी लेकर ये मेरे स्वामी खड़े हैं ।

22:35, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण

गोपालराइ दधि माँगत अरु रोटी ।
माखन सहित देहि मेरी मैया, सुपक सुकोमल रोटी ॥
कत हौ आरि करत मेरे मोहन, तुम आँगन मैं लोटी?
जो चाहौ सो लेहु तुरतहीं, छाँड़ौ यह मति खोटी ॥
करि मनुहारि कलेऊ दीन्हौ, मुख चुपर्‌यौ अरु चोटी ।
सूरदास कौ ठाकुर ठाढ़ौ, हाथ लकुटिया छोटी ॥

गोपालराय दही और रोटी माँग रहे हैं । (वे कहते हैं-) `मैया। अच्छी पकी हुई और खूब कोमल रोटी मुझे मक्खन के साथ दे ।' (माता कहती हैं -)`मेरे मोहन ! तुम आँगन में लोटकर मचलते क्यों हो, यह बुरा स्वभाव छोड़ दो ।जो इच्छा हो वह तुरंत लो।' निहोरा करके (माताने) कलेऊ दिया और फिर मुख तथा अलकों में तेल लगाया । सूरदास जी कहते हैं कि अब (कलेऊ करके) हाथ में छोटी-सी छड़ी लेकर ये मेरे स्वामी खड़े हैं ।