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"रेलगाड़ी में (1) / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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कुछ बैठे ऊँघ रहे हैं
कुछ अप्पर बर्थ पर
खूंटी तान कर
सोये हैं बेफिक्र
कुछ गैलरी में
खड़े रहने की
जगह पा सके हैं
बड़ी मुश्किल से।
फकत रेलगाड़ी नहीं चलती है
सवारियों के मन की गाड़ी
उससे भी कई गुना
तेज गति से चल रही है
बिना कहीं रुके-थके।