भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोउ भैया मैया पै माँगत / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} दोउ भैया मैया पै माँगत, दै री मैया, माखन रोटी ।...)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी ॥<br><br>
 
सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी ॥<br><br>
  
भावार्थ :--दोनों भाई मैयासे माँग रहे हैं- `अरी मैया! माखन-रोटी दे।' माता पुत्रों की प्यारीबातें सुन रही है और (उनके मचलनेका आनन्द लेनेके लिये) झूठ-मूठ घरके काममें उलझी है । (इससे रूठकर) बलरामजी ने नाकका मोती पकड़ा और कुँवर कन्हाईने दोनों हाथोंमें दृढ़तासे (माताकी) चोटी (वेणी) पकड़ी, मानो हंस और मयूर अपना-अपना आहार(मोती और सर्प) लिये हों किंतु कविकेद्वारा वर्णित यह उपमा भी कुछ छोटी ही है (उस शोभाके अनुरूप नहीं)। यह शोभा देखकर श्रीनन्दजीका चित्त आनन्दमग्न हो रहा है; अत्यन्त प्रसन्नतासे हँसते हुए वे लोट-पोट हो रहे हैं । सूरदासजी कहते हैं कि यशोदाजी भी हृदयमें प्रमुदित हो रही हैं, वे बड़भागिनी हैं, उनके पुण्य महान हैं (जो यह आनन्द उन्हें मिल रहा है)।
+
भावार्थ :--दोनों भाई मैया से माँग रहे हैं- `अरी मैया! माखन-रोटी दे।' माता पुत्रों की प्यारी बातें सुन रही है और (उनके मचलने का आनन्द लेने के लिये) झूठ-मूठ घर के काम में उलझी है । (इससे रूठकर) बलराम जी ने नाक का मोती पकड़ा और कुँवर कन्हाई ने दोनों हाथों में दृढ़ता से (माता की) चोटी (वेणी) पकड़ी, मानो हंस और मयूर अपना-अपना आहार(मोती और सर्प) लिये हों किंतु कवि के द्वारा वर्णित यह उपमा भी कुछ छोटी ही है (उस शोभा के अनुरूप नहीं)। यह शोभा देखकर श्रीनन्द जी का चित्त आनन्दमग्न हो रहा है; अत्यन्त प्रसन्नता से हँसते हुए वे लोट-पोट हो रहे हैं । सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा जी भी हृदय में प्रमुदित हो रही हैं, वे बड़भागिनी हैं, उनके पुण्य महान हैं (जो यह आनन्द उन्हें मिल रहा है)।

22:48, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

दोउ भैया मैया पै माँगत, दै री मैया, माखन रोटी ।
सुनत भावती बात सुतनि की, झूठहिं धाम के काम अगोटी ॥
बल जू गह्यौ नासिका-मोती, कान्ह कुँवर गहि दृढ़ करि चोटी ।
मानौ हंस-मोर भष लीन्हें, कबि उपमा बरनै कछु छोटी ॥
यह छबि देखि नंद-मन-आनँद, अति सुख हँसत जात हैं लोटी।
सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी ॥

भावार्थ :--दोनों भाई मैया से माँग रहे हैं- `अरी मैया! माखन-रोटी दे।' माता पुत्रों की प्यारी बातें सुन रही है और (उनके मचलने का आनन्द लेने के लिये) झूठ-मूठ घर के काम में उलझी है । (इससे रूठकर) बलराम जी ने नाक का मोती पकड़ा और कुँवर कन्हाई ने दोनों हाथों में दृढ़ता से (माता की) चोटी (वेणी) पकड़ी, मानो हंस और मयूर अपना-अपना आहार(मोती और सर्प) लिये हों किंतु कवि के द्वारा वर्णित यह उपमा भी कुछ छोटी ही है (उस शोभा के अनुरूप नहीं)। यह शोभा देखकर श्रीनन्द जी का चित्त आनन्दमग्न हो रहा है; अत्यन्त प्रसन्नता से हँसते हुए वे लोट-पोट हो रहे हैं । सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा जी भी हृदय में प्रमुदित हो रही हैं, वे बड़भागिनी हैं, उनके पुण्य महान हैं (जो यह आनन्द उन्हें मिल रहा है)।