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Kavita Kosh से
सब को
सब का
इच्छित तू
दे देता
तो तेरा
क्या होता ..?
तेरे वजूद
पर हम ने
आज तक
नही लगाये
कोई प्रश्न -चिन्ह --...!
इस तानाशाही
मे - बहुत
हो गया
तुम्हारा -अन्याय
अब और नहीं ....
पर तुम
होंगे या मै- एक
म्यान - दो
तलवार नहीं ....
मैं भी
तेरा ही
अंश हूँ -
हे - पर- आत्म
तुम से
कम हठी नहीं .....
नीचे उतर
और - मेरी जगह
बैठ
मेरी लहुलुहान
बिवाइयों मैं देख ..
कितने ब्रहामंड
हताहत हैं ....!
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