"दिलों में फिर वो पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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13:52, 25 मार्च 2012 का अवतरण
दिलों में फिर वो पहले सी, मोहब्बत हो अगर पैदा
यकीनन हो नहीं सकता, जहाँ में कोई शर<ref>फसाद</ref> पैदा
फ़जाओं में जो तल्ख़ी<ref>कड़वाहट</ref> है जला कर खाक़ कर डालो
शजर<ref>वृक्ष</ref> ऐसे लगाओ जिनपे हों मीठे समर<ref>फल</ref> पैदा
कहो वो बात जो कानो से, सीने में उतर जाए
असर दिल पे जो कर जाए, करो ऐसी नज़र पैदा
इलाजे रंजो-ग़म वो ही, करेगा अब मुसीबत में
दिया है दर्दे दिल जिसने, किया दर्दे जिगर पैदा
ख़ुदा चाहे तो सूखे पेड़, पौधों को हरा कर दे
ख़ुदा चाहे तो हो जाएगा, आहों में असर पैदा
तेरे भटके हुए बन्दों को, जो रस्ता दिखा जायें
कुछ ऐसे लोग दुनिया में, ख़ुदाया फिर से कर पैदा
अगर तन्हाई में कह दे कोई, 'मैं मौत हूँ तेरी'
'रक़ीब' उस शख्स के दिल में, सरासर होगा डर पैदा