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"गुडिय़ा (4) / उर्मिला शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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उसने किया है फैसला
 
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कि नहींबानएगी अब
 
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कोई गुडिय़ा
 
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वह तो बनाएगी एक चिडिय़ा
 
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जो नाप सके
 
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सारा आकाश
 
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आंखो में उतरती
 
आंखो में उतरती
 
 
निलिमा के बीच
 
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उगने लगे बाज
 
उगने लगे बाज
 
 
क्षण भर को  
 
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थरथरा उठी उंगलियां
 
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फिर भी वह बना रही है चिडिय़ा
 
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जिसे लडऩा है
 
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बाजों और बहलियों से।
  
बाजों और बहलियों से।
 
 
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14:03, 25 मार्च 2012 का अवतरण


उसने किया है फैसला
कि नहींबानएगी अब
कोई गुडिय़ा
वह तो बनाएगी एक चिडिय़ा
जो नाप सके
सारा आकाश
आंखो में उतरती
निलिमा के बीच
उगने लगे बाज
क्षण भर को
थरथरा उठी उंगलियां
फिर भी वह बना रही है चिडिय़ा
जिसे लडऩा है
बाजों और बहलियों से।