"धड़कनों के बीच कस्तूरी लिए / राजेश शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी ने सीखलीं भरना कुलांचें, | ज़िन्दगी ने सीखलीं भरना कुलांचें, | ||
मान नहीं करता कि अब इतिहास बाँचें. | मान नहीं करता कि अब इतिहास बाँचें. | ||
− | घुंघरुओं में बांधकर चरों दिशाएँ , | + | घुंघरुओं में बांधकर चरों दिशाएँ, |
हम बिना सुर-ताल के निर्बाध नाचें. | हम बिना सुर-ताल के निर्बाध नाचें. | ||
− | जब अकेले ही | + | जब अकेले ही विचरने हृदय हो, |
झुण्ड के अनुबंध को कैसे जियें. | झुण्ड के अनुबंध को कैसे जियें. | ||
20:12, 3 अप्रैल 2012 का अवतरण
धड़कनों के बीच कस्तूरी लिए ,
प्रश्न ये है गंध को कैसे जियें ,
अब किसी आनंद को कैसे जियें,
ज़िन्दगी ने सीखलीं भरना कुलांचें,
मान नहीं करता कि अब इतिहास बाँचें.
घुंघरुओं में बांधकर चरों दिशाएँ,
हम बिना सुर-ताल के निर्बाध नाचें.
जब अकेले ही विचरने हृदय हो,
झुण्ड के अनुबंध को कैसे जियें.
एक भटके लक्ष्य पर,सौ-सौ शिकारी,
हर शिकारी की हवाओं पर सवारी.
जब नहीं हो पेड़- पौधा शेष कोई,
तब बचेगी ज़िन्दगी कैसे हमारी.
फूल ओढ़े आवरण पर आवरण हैं ,
प्रस्फुटित मकरंद को कैसे जियें.
हम नहीं हें सिर्फ, इकलौते अभागे,
जो बहारों के शिखर से कूद भागे.
और भी हैं , बंधुवर, मेरे तुम्हारे ,
जो रहे हैं दौड़ में हरबार आगे.
रास्ते पहुचे कसैली खाइयों में ,
चिर-रसीले छंद को कैसे जियें