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"बाजुओ पर दिये परवाजे़ अना दी है मुझे / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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फिर ख़लाओं में नयी राह दिखा दी है मुझ | फिर ख़लाओं में नयी राह दिखा दी है मुझ |
16:30, 10 अप्रैल 2012 का अवतरण
बाजुओं-पर दिये परवाजे़ ‘अना दी है मुझे
फिर ख़लाओं में नयी राह दिखा दी है मुझ
अपनी हस्ती से वो दरवेश तो बेगाना रहा
मेरी रूदाद मगर उसने सुना दी है मुझे
फिर ज़रा ग़ार के दरवाजे़ से पत्थर सरका
ऐसा लगता है कि फिर माँ ने दुआ दी है मुझे
क़र्ज़ बोता रहूँ और ब्याज में फसलें काटूँ
मेरे अजदाद1 ने मीरास2 भी क्या दी है मुझे
ये तो होना ही था इस रोज़ रहे-उल्फ़त में
जुर्म उसका था मगर उसने सज़ा दी है मुझे
जैसे सीने में सिमट आई हो दुनिया सारी
शायरी तूने ही बुस्अत3 ये अता की है मुझे
शब्दार्थ
<references/>