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"शाम के साने से जब आंचल ढले / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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17:08, 10 अप्रैल 2012 का अवतरण
शाम के शाने1 से जब आँचल ढले
चाँदनी के रथ पे तुम आना चले
रात कच्ची नींद में तुझको जगाऊँ
तू हिनाई हाथ से आँखें मले
तू सुरूरे-रक्स2 में बलखाये या
चाँद लहरों के तले अँगड़ाई ले
हो चले नासूर जब ज़ख़्मे उमीद
तब तेरी आवाज़ के नश्तर चले
हम फ़क़ीरों की कहाँ मंज़िल यहाँ,
मरहले3 दर मरहले दर मरहले
आओ चक्कर बिस्तरे-ख़ाकी पे सोयें
नीलगूँ आकाश के साये तले
चढ़ रहे हैं यास के साये बहुत
यूँ सिमटते जा रहे हैं फ़ासले
आप कैसे शायरों के ग़ोल में
आदमी तो आप थे अच्छे भले
शब्दार्थ
<references/>