भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शाम के साने से जब आंचल ढले / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=|संग्रह=हवाओं क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
आदमी तो आप थे अच्छे भले
 
आदमी तो आप थे अच्छे भले
 
</poem>
 
</poem>
1. धरती 2. न्याय 3. जादूगरनी 4. पुनरावृत्ति 5. छंद मापन विधि 6. श्रेष्ठ
 
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

17:08, 10 अप्रैल 2012 का अवतरण

शाम के शाने1 से जब आँचल ढले
चाँदनी के रथ पे तुम आना चले

रात कच्ची नींद में तुझको जगाऊँ
तू हिनाई हाथ से आँखें मले

तू सुरूरे-रक्स2 में बलखाये या
चाँद लहरों के तले अँगड़ाई ले

हो चले नासूर जब ज़ख़्मे उमीद
तब तेरी आवाज़ के नश्तर चले

हम फ़क़ीरों की कहाँ मंज़िल यहाँ,
मरहले3 दर मरहले दर मरहले

आओ चक्कर बिस्तरे-ख़ाकी पे सोयें
नीलगूँ आकाश के साये तले

चढ़ रहे हैं यास के साये बहुत
यूँ सिमटते जा रहे हैं फ़ासले

आप कैसे शायरों के ग़ोल में
आदमी तो आप थे अच्छे भले

शब्दार्थ
<references/>