"शाम के साने से जब आंचल ढले / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
आप कैसे शायरों के ग़ोल में | आप कैसे शायरों के ग़ोल में | ||
आदमी तो आप थे अच्छे भले | आदमी तो आप थे अच्छे भले | ||
+ | |||
+ | टूट जाये रात का बन्दे-कबा5 | ||
+ | सीना-ए-खुर्शीद से चादर ढले | ||
+ | |||
+ | रौशनी के इस तआकुब7 में ‘अना’ | ||
+ | जब जले अपने ही बालो-पर जले | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | 1. कंधा 2. नृत्य का उन्माद 3. पड़ाव 4. धरती का बिछौना 5.’वस्त्र की गांठ 6. सूर्य का वक्षस्थल 7. पीछा करना | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
17:13, 10 अप्रैल 2012 का अवतरण
शाम के शाने1 से जब आँचल ढले
चाँदनी के रथ पे तुम आना चले
रात कच्ची नींद में तुझको जगाऊँ
तू हिनाई हाथ से आँखें मले
तू सुरूरे-रक्स2 में बलखाये या
चाँद लहरों के तले अँगड़ाई ले
हो चले नासूर जब ज़ख़्मे उमीद
तब तेरी आवाज़ के नश्तर चले
हम फ़क़ीरों की कहाँ मंज़िल यहाँ,
मरहले3 दर मरहले दर मरहले
आओ चक्कर बिस्तरे-ख़ाकी पे सोयें
नीलगूँ आकाश के साये तले
चढ़ रहे हैं यास के साये बहुत
यूँ सिमटते जा रहे हैं फ़ासले
आप कैसे शायरों के ग़ोल में
आदमी तो आप थे अच्छे भले
टूट जाये रात का बन्दे-कबा5
सीना-ए-खुर्शीद से चादर ढले
रौशनी के इस तआकुब7 में ‘अना’
जब जले अपने ही बालो-पर जले
1. कंधा 2. नृत्य का उन्माद 3. पड़ाव 4. धरती का बिछौना 5.’वस्त्र की गांठ 6. सूर्य का वक्षस्थल 7. पीछा करना