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"इलाही! है आस या तलास / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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'''केनी जी के सैक्सोफ़ोन के लिए
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'''केनी जी के सैक्सोफ़ोन के लिए'''
 
    
 
    
 
जिन्हें पकड़नी है पहली लोकल
 
जिन्हें पकड़नी है पहली लोकल
 
 
वे घरों के भीतर खोज रहे हैं बटुआ
 
वे घरों के भीतर खोज रहे हैं बटुआ
 
 
जुराबे और तस्मे
 
जुराबे और तस्मे
 
 
बाक़ी अपनी नींद के सबसे गाढ़े अम्ल में
 
बाक़ी अपनी नींद के सबसे गाढ़े अम्ल में
 
  
 
कोई है जो बाहर
 
कोई है जो बाहर
 
 
प्रेमकथाओं की तरह नाज़ुक घंटी की आवाज़ पर
 
प्रेमकथाओं की तरह नाज़ुक घंटी की आवाज़ पर
 
 
बुदबुदाए जा रहा है राम जय-जय राम
 
बुदबुदाए जा रहा है राम जय-जय राम
 
 
जैसे सड़क पर कोई मश्क से छिड़क रहा हो पानी
 
जैसे सड़क पर कोई मश्क से छिड़क रहा हो पानी
 
  
 
जब बैठने की जगहें बदल गई हों
 
जब बैठने की जगहें बदल गई हों
 
 
पियानो पर पड़ते हैं क्रूर हाथ और धुनों का शोर खदेड़ दे
 
पियानो पर पड़ते हैं क्रूर हाथ और धुनों का शोर खदेड़ दे
 
 
बाक़ी तमाम साजिंदों को
 
बाक़ी तमाम साजिंदों को
 
 
जिन पत्थरों पर दुलार से लिखा राम ने नाम
 
जिन पत्थरों पर दुलार से लिखा राम ने नाम
 
 
उनसे फोड़ दूसरों के सिर
 
उनसे फोड़ दूसरों के सिर
 
 
उन्मत्त हो जाएँ कपिगण
 
उन्मत्त हो जाएँ कपिगण
 
 
जब फूल सुंघाकर कर दिया जाए बेहोश
 
जब फूल सुंघाकर कर दिया जाए बेहोश
 
 
और प्रार्थनाएं गाई जाएँ सप्तक पर
 
और प्रार्थनाएं गाई जाएँ सप्तक पर
 
 
यह कौन है जो सबसे गहराई से निकलने वाले  
 
यह कौन है जो सबसे गहराई से निकलने वाले  
 
 
`सा´ पर टिका है
 
`सा´ पर टिका है
 
  
 
पौ फटने के पहले अंधकार में
 
पौ फटने के पहले अंधकार में
 
 
जब कंठ के स्वर और चप्पलों की आवाज़ भी
 
जब कंठ के स्वर और चप्पलों की आवाज़ भी
 
 
पवित्रता से भर जाते हैं
 
पवित्रता से भर जाते हैं
 
 
मकानों के बीच गलियों में  
 
मकानों के बीच गलियों में  
 
 
कौन ढूंढ़ रहा है राम को
 
कौन ढूंढ़ रहा है राम को
 
 
जिसकी गुमशुदगी का कोई पोस्टर नहीं दीवार पर
 
जिसकी गुमशुदगी का कोई पोस्टर नहीं दीवार पर
 
 
अख़बार में विज्ञापन नहीं
 
अख़बार में विज्ञापन नहीं
 
 
टी.वी. पर कोई सूचना नहीं
 
टी.वी. पर कोई सूचना नहीं
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16:28, 16 अप्रैल 2012 का अवतरण

साँचा:KKCatkavita

केनी जी के सैक्सोफ़ोन के लिए
  
जिन्हें पकड़नी है पहली लोकल
वे घरों के भीतर खोज रहे हैं बटुआ
जुराबे और तस्मे
बाक़ी अपनी नींद के सबसे गाढ़े अम्ल में

कोई है जो बाहर
प्रेमकथाओं की तरह नाज़ुक घंटी की आवाज़ पर
बुदबुदाए जा रहा है राम जय-जय राम
जैसे सड़क पर कोई मश्क से छिड़क रहा हो पानी

जब बैठने की जगहें बदल गई हों
पियानो पर पड़ते हैं क्रूर हाथ और धुनों का शोर खदेड़ दे
बाक़ी तमाम साजिंदों को
जिन पत्थरों पर दुलार से लिखा राम ने नाम
उनसे फोड़ दूसरों के सिर
उन्मत्त हो जाएँ कपिगण
जब फूल सुंघाकर कर दिया जाए बेहोश
और प्रार्थनाएं गाई जाएँ सप्तक पर
यह कौन है जो सबसे गहराई से निकलने वाले
`सा´ पर टिका है

पौ फटने के पहले अंधकार में
जब कंठ के स्वर और चप्पलों की आवाज़ भी
पवित्रता से भर जाते हैं
मकानों के बीच गलियों में
कौन ढूंढ़ रहा है राम को
जिसकी गुमशुदगी का कोई पोस्टर नहीं दीवार पर
अख़बार में विज्ञापन नहीं
टी.वी. पर कोई सूचना नहीं