भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कहीं भी कोई कस्बा / कुमार अंबुज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अंबुज }} अभी वसंत नहीं आया है पेड़ों पर डोलते हैं...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कुमार अंबुज
 
|रचनाकार=कुमार अंबुज
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
अभी वसंत नहीं आया है
 
अभी वसंत नहीं आया है
 
 
पेड़ों पर डोलते हैं पुराने पत्ते
 
पेड़ों पर डोलते हैं पुराने पत्ते
 
 
लगातार उड़ती धूल वहाँ कुछ आराम फरमाती है
 
लगातार उड़ती धूल वहाँ कुछ आराम फरमाती है
 
  
 
एक लम्बी दुबली सड़क जिसके किनारे
 
एक लम्बी दुबली सड़क जिसके किनारे
 
 
जब-तब जम्हाइयाँ लेती दुकानें
 
जब-तब जम्हाइयाँ लेती दुकानें
 
 
यह बाज़ार है
 
यह बाज़ार है
 
 
आगे दो चौराहे
 
आगे दो चौराहे
 
 
एक पर मूर्ति के लिए विवाद हुआ था
 
एक पर मूर्ति के लिए विवाद हुआ था
 
 
दूसरी किसी योद्धा की है
 
दूसरी किसी योद्धा की है
 
 
नहीं डाली जा सकती जिस पर टेढ़ी निगाह
 
नहीं डाली जा सकती जिस पर टेढ़ी निगाह
 
  
 
नाई की दुकान पर चौदह घंटे बजता है रेडियो
 
नाई की दुकान पर चौदह घंटे बजता है रेडियो
 
 
पोस्ट-मास्टर और बैंक-मैनेजर के घर का पता चलता-फिरता आदमी भी बता देगा
 
पोस्ट-मास्टर और बैंक-मैनेजर के घर का पता चलता-फिरता आदमी भी बता देगा
 
 
उधर पेशाब से गलती हुई लोकप्रिय दीवार
 
उधर पेशाब से गलती हुई लोकप्रिय दीवार
 
 
जिसके पार खंडहर, गुम्बद और मीनारें
 
जिसके पार खंडहर, गुम्बद और मीनारें
 
 
ए.टी.एम. ने मंदिर के करीब बढ़ा दी है रौनक
 
ए.टी.एम. ने मंदिर के करीब बढ़ा दी है रौनक
 
  
 
आठ-दस ऑटो हैं रिेक्शेवालों को लतियाते
 
आठ-दस ऑटो हैं रिेक्शेवालों को लतियाते
 
 
तांगेवालों की यूनियन फेल हुई
 
तांगेवालों की यूनियन फेल हुई
 
 
ट्रैक्टरों, लारियों से बचकर पैदल गुज़रते हैं आदमी खाँसते-खँखारते
 
ट्रैक्टरों, लारियों से बचकर पैदल गुज़रते हैं आदमी खाँसते-खँखारते
 
 
अभी-अभी ख़तम हुए हैं चुनाव
 
अभी-अभी ख़तम हुए हैं चुनाव
 
 
दीवारों पर लिखत और फटे पोस्टर बाक़ी
 
दीवारों पर लिखत और फटे पोस्टर बाक़ी
 
  
 
गठित हुई हैं तीन नई धार्मिक सेनाएँ
 
गठित हुई हैं तीन नई धार्मिक सेनाएँ
 
 
जिनकी धमक है बेरोज़गार लड़कों में
 
जिनकी धमक है बेरोज़गार लड़कों में
 
  
 
चिप्स, नमकीन और शीतल पेय की बहार है
 
चिप्स, नमकीन और शीतल पेय की बहार है
 
 
पुस्तकालय तोड़कर निकाली हैं तीन दुकानें
 
पुस्तकालय तोड़कर निकाली हैं तीन दुकानें
 
 
अस्पताल और थाने में पुरानी दृश्यावलियाँ हैं
 
अस्पताल और थाने में पुरानी दृश्यावलियाँ हैं
 
 
रात के ग्यारह बजने को हैं
 
रात के ग्यारह बजने को हैं
 
 
आखिरी बस आ चुकी
 
आखिरी बस आ चुकी
 
 
चाय मिल सकती है टाकीज़ के पास
 
चाय मिल सकती है टाकीज़ के पास
 
  
 
पुराना तालाब, बस स्टैंड, कान्वेंट स्कूल, नया पंचायत भवन,
 
पुराना तालाब, बस स्टैंड, कान्वेंट स्कूल, नया पंचायत भवन,
 
 
एक किलोमीटर दूर ढाबा
 
एक किलोमीटर दूर ढाबा
 
 
और हनुमान जी की टेकरी दर्शनीय स्थल हैं।
 
और हनुमान जी की टेकरी दर्शनीय स्थल हैं।
 +
</poem>

21:12, 18 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

अभी वसंत नहीं आया है
पेड़ों पर डोलते हैं पुराने पत्ते
लगातार उड़ती धूल वहाँ कुछ आराम फरमाती है

एक लम्बी दुबली सड़क जिसके किनारे
जब-तब जम्हाइयाँ लेती दुकानें
यह बाज़ार है
आगे दो चौराहे
एक पर मूर्ति के लिए विवाद हुआ था
दूसरी किसी योद्धा की है
नहीं डाली जा सकती जिस पर टेढ़ी निगाह

नाई की दुकान पर चौदह घंटे बजता है रेडियो
पोस्ट-मास्टर और बैंक-मैनेजर के घर का पता चलता-फिरता आदमी भी बता देगा
उधर पेशाब से गलती हुई लोकप्रिय दीवार
जिसके पार खंडहर, गुम्बद और मीनारें
ए.टी.एम. ने मंदिर के करीब बढ़ा दी है रौनक

आठ-दस ऑटो हैं रिेक्शेवालों को लतियाते
तांगेवालों की यूनियन फेल हुई
ट्रैक्टरों, लारियों से बचकर पैदल गुज़रते हैं आदमी खाँसते-खँखारते
अभी-अभी ख़तम हुए हैं चुनाव
दीवारों पर लिखत और फटे पोस्टर बाक़ी

गठित हुई हैं तीन नई धार्मिक सेनाएँ
जिनकी धमक है बेरोज़गार लड़कों में

चिप्स, नमकीन और शीतल पेय की बहार है
पुस्तकालय तोड़कर निकाली हैं तीन दुकानें
अस्पताल और थाने में पुरानी दृश्यावलियाँ हैं
रात के ग्यारह बजने को हैं
आखिरी बस आ चुकी
चाय मिल सकती है टाकीज़ के पास

पुराना तालाब, बस स्टैंड, कान्वेंट स्कूल, नया पंचायत भवन,
एक किलोमीटर दूर ढाबा
और हनुमान जी की टेकरी दर्शनीय स्थल हैं।