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==विविध कृतियाँ==   
 
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भारत के प्रमुख युवा-चित्रकारों में से एक।
 
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==प्रदर्शनी==
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रायपुर छत्तीसगढ़ - १९७९
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ब्योहारी , मध्यप्रदेश - १९८३
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शहडोल, मध्यप्रदेश - १९८३
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विधानसभा सभागार, भोपाल - १९८५
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मध्यप्रदेश कला परिषद्, भोपाल - १९८६
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दंगा और दंगे के बाद, हिंदी भवन, भोपाल - १९९३
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विवेकानंद सभागार, बेतुल - १९९५
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==प्रकाशन==
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साक्षात्कार, अक्षरा, वागर्थ, मधुमती, सारिका, धर्मयुग, कहानीकार, नई कहानियां, पहल, गवाह, कथानक,कथाबिम्ब, कथादेश, काव्या, कारखाना, शिराजा, हंस, सारिका टाईम्स, नवभारत टाईम्स, संडे मेल, दिनमान, आजकल, नवनीत, खनन भारती, आकलन, वर्तमान साहित्य, समकालीन जनमत, समकालीन जनगाथा, आकंठ, संबोधन, ओर, वसुंधरा, मध्यांतर, शुरूआत, असुविधा, कल के लिए,गुंजन आकल्प, अर्चना, भाषासेतु, पुरुष, कला प्रयोजन,प्रेरणा,साहित्य अमृत, उत्तर प्रदेश, सदभावना दर्पण, कृति ओर,संकेत, परिकथा जैसी साहित्यिक पत्रिकाओ के साथ देश की अनेको व्यावसायिक -अव्यावसायिक पत्र -पत्रिकाओ, पुस्तकों के मुख पृष्ठों पर अबतक लगभग १४.००० ( चौदह हजार ) रेखांकन/चित्र के साथ कविताये प्रकाशित
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==सम्मान==
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सृजन सम्मान -१९९५, भोपाल(म.प्र.)
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कलारत्न -१९९८, बिहार
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सृजन सम्मान-२००३, रायपुर(छ.ग.)
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==रवीन्द्र की कला और कविता==
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जिस तरह हमारा परिवेश और उससे उपजी अनुभूतियाँ बहुरंगी है, उसी तरह अभिव्यक्ति की तड़प तरंग दैध्र्यो पर सुनी जा सकती है, जिन्होंने तुलिका को अभिव्यक्ति का साधन चुना है वे इस सच्चाई से बार -बार रूबरू होते रहते है की 'ऑब्जेक्ट' से अधिक 'रिफ्लेक्ट ' का महत्व है |जिन कलाकारों को अपनी कला के जरिये साधारण चीजों के असाधारण पहलू उद् घाटित करने में सफलता हासिल हो पाती है , उन्ही में से एक है कुँअर रवीन्द्र |
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ग्रामीण परिवेश से शहरी उलझाव तक की दुर्गम यात्रा पार करके मनुष्यता के सच तक पहुँचने की लालसा रखने वाला यह फनकार चित्रकला के प्रायः सभी पहलुओं को स्पर्श कर चुका है | आजादी के बाद न सिर्फ पैदा हो कर, बल्कि पल -बढ़ कर संस्कार पाई हुई पीढी का कुँअर रवीन्द्र सटीक प्रतिनिधित्व करते है, जिसने वर्तमान और अतीत को श्वास और निश्वास की तरह अपनी कला में साधने की कोशिश की है |
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अमूर्त की ओर विशिष्ट आग्रह रखने वाला उभर कर बिखरता हुआ यह कलाकार उसी इन्हेरेंटकन्ट्राडिक्शन का शिकार है जो प्रकारान्तर से पूरे समाज को मथ रहा है | इसी अर्थ में रवीन्द्र की कला समकालीन प्रवित्तियो और सोच को ईमानदारी से प्रतिविम्बित करती है | रवीन्द्र के पेस्टल रंग वर्णनीय विषय के माकूल है | जैसे कर्मरत ग्रामीण दम्पत्ति को चित्रित करते हुए ,उन्होंने चटक रंगों के प्रति ग्रामीण रुझान को स्पस्ट किया है| शायद यही वजह है की अमूर्त होते हुए भी उनका चित्रांकन बोलता हुआ-सा लगता है | रवीन्द्र की सबसे बड़ी ताकत उसकी सुपुष्ट रेखाए है , जो किसी मेहनती किसान या मजदूर की 'मसल्स ' की तरह अपनी कहानी खुद कहती है | भावनाओ के उद्वेग और अनभूतियो के उद् दाम प्रवाह का गहराई सेचित्रण करती हुई कुँअर रवीन्द्र की रेखाए आने वाले दशकों में अभिव्यक्ति के चमत्कारों का आश्वासन जरूर देती है , बशर्ते उनकी साधना निष्कम्प और अनवरत रूप से जरी रहे |
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कुँअर रवीन्द्र अमूर्त चित्रों के चितेरे है । वह पूछते है :-आख़िर हम फाइन पेंटिंग क्यों करें ? उनका तर्क है की यह काम तो आधुनिक युग में कैमरा बखूबी कर सकता है ,और फ़िर औरत या पुरूष के शारीरिक सौन्दर्य का कला में क्या मूल्य है । कुँअर इस सोच ,विचार और कल्पना को चित्रित व व्यक्त करना चाहते है ,जो कैमरे की मशीनी आँख से छूट जाती है या कैमरा जिसे पकड़ नहीं पता ।
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कुँअर को अभी एक लम्बी और सार्थक यात्रा तय करनी है । कला यात्रा की खूबी यह होती है की यह यात्रा कभी ख़त्म नहीं होती । हर पड़ाव व उपलब्धी आगे की यात्रा का बायस होते है ।
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[[सुधीर सक्सेना]]
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कवि ,पत्रकार

21:55, 19 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

कुँअर रवीन्द्र


जन्म

15 जून 1959


जन्म स्थान रायपुर कर्चुलीयान [म.प्र.] भारत

विविध कृतियाँ

भारत के प्रमुख युवा-चित्रकारों में से एक।


प्रदर्शनी

रायपुर छत्तीसगढ़ - १९७९ ब्योहारी , मध्यप्रदेश - १९८३ शहडोल, मध्यप्रदेश - १९८३ विधानसभा सभागार, भोपाल - १९८५ मध्यप्रदेश कला परिषद्, भोपाल - १९८६ दंगा और दंगे के बाद, हिंदी भवन, भोपाल - १९९३ विवेकानंद सभागार, बेतुल - १९९५

प्रकाशन

साक्षात्कार, अक्षरा, वागर्थ, मधुमती, सारिका, धर्मयुग, कहानीकार, नई कहानियां, पहल, गवाह, कथानक,कथाबिम्ब, कथादेश, काव्या, कारखाना, शिराजा, हंस, सारिका टाईम्स, नवभारत टाईम्स, संडे मेल, दिनमान, आजकल, नवनीत, खनन भारती, आकलन, वर्तमान साहित्य, समकालीन जनमत, समकालीन जनगाथा, आकंठ, संबोधन, ओर, वसुंधरा, मध्यांतर, शुरूआत, असुविधा, कल के लिए,गुंजन आकल्प, अर्चना, भाषासेतु, पुरुष, कला प्रयोजन,प्रेरणा,साहित्य अमृत, उत्तर प्रदेश, सदभावना दर्पण, कृति ओर,संकेत, परिकथा जैसी साहित्यिक पत्रिकाओ के साथ देश की अनेको व्यावसायिक -अव्यावसायिक पत्र -पत्रिकाओ, पुस्तकों के मुख पृष्ठों पर अबतक लगभग १४.००० ( चौदह हजार ) रेखांकन/चित्र के साथ कविताये प्रकाशित

सम्मान

सृजन सम्मान -१९९५, भोपाल(म.प्र.) कलारत्न -१९९८, बिहार सृजन सम्मान-२००३, रायपुर(छ.ग.)

रवीन्द्र की कला और कविता

जिस तरह हमारा परिवेश और उससे उपजी अनुभूतियाँ बहुरंगी है, उसी तरह अभिव्यक्ति की तड़प तरंग दैध्र्यो पर सुनी जा सकती है, जिन्होंने तुलिका को अभिव्यक्ति का साधन चुना है वे इस सच्चाई से बार -बार रूबरू होते रहते है की 'ऑब्जेक्ट' से अधिक 'रिफ्लेक्ट ' का महत्व है |जिन कलाकारों को अपनी कला के जरिये साधारण चीजों के असाधारण पहलू उद् घाटित करने में सफलता हासिल हो पाती है , उन्ही में से एक है कुँअर रवीन्द्र |

ग्रामीण परिवेश से शहरी उलझाव तक की दुर्गम यात्रा पार करके मनुष्यता के सच तक पहुँचने की लालसा रखने वाला यह फनकार चित्रकला के प्रायः सभी पहलुओं को स्पर्श कर चुका है | आजादी के बाद न सिर्फ पैदा हो कर, बल्कि पल -बढ़ कर संस्कार पाई हुई पीढी का कुँअर रवीन्द्र सटीक प्रतिनिधित्व करते है, जिसने वर्तमान और अतीत को श्वास और निश्वास की तरह अपनी कला में साधने की कोशिश की है |

अमूर्त की ओर विशिष्ट आग्रह रखने वाला उभर कर बिखरता हुआ यह कलाकार उसी इन्हेरेंटकन्ट्राडिक्शन का शिकार है जो प्रकारान्तर से पूरे समाज को मथ रहा है | इसी अर्थ में रवीन्द्र की कला समकालीन प्रवित्तियो और सोच को ईमानदारी से प्रतिविम्बित करती है | रवीन्द्र के पेस्टल रंग वर्णनीय विषय के माकूल है | जैसे कर्मरत ग्रामीण दम्पत्ति को चित्रित करते हुए ,उन्होंने चटक रंगों के प्रति ग्रामीण रुझान को स्पस्ट किया है| शायद यही वजह है की अमूर्त होते हुए भी उनका चित्रांकन बोलता हुआ-सा लगता है | रवीन्द्र की सबसे बड़ी ताकत उसकी सुपुष्ट रेखाए है , जो किसी मेहनती किसान या मजदूर की 'मसल्स ' की तरह अपनी कहानी खुद कहती है | भावनाओ के उद्वेग और अनभूतियो के उद् दाम प्रवाह का गहराई सेचित्रण करती हुई कुँअर रवीन्द्र की रेखाए आने वाले दशकों में अभिव्यक्ति के चमत्कारों का आश्वासन जरूर देती है , बशर्ते उनकी साधना निष्कम्प और अनवरत रूप से जरी रहे |

अशोक चतुर्वेदी कथाकार


कुँअर रवीन्द्र में इर्द -गिर्द की चीजों और उनके अन्तर्सम्बन्धों में गहरे पैठने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है । कृत्रिमता से परहेज बरतने वाले कुँअर की रूचि जीवंत यथार्थ में है और वह इसी यथार्थ को श्वेत -श्याम रेखाओं में उकेरने का जतन अत्यन्त तन्मयता और लगन से करते है । उनके कई रेखांकन न तो शौक है और नही आदत । रेखांकन उनके लिए मानसिक विक्षोभों की सहज अभिव्यक्ति है और इनकी अभिव्यक्ति का दायरा उतना ही बडा व सघन है , जितना आसपास की लौकिक घटनायों का प्रभाव लोक ।

कुँअर रवीन्द्र अमूर्त चित्रों के चितेरे है । वह पूछते है :-आख़िर हम फाइन पेंटिंग क्यों करें ? उनका तर्क है की यह काम तो आधुनिक युग में कैमरा बखूबी कर सकता है ,और फ़िर औरत या पुरूष के शारीरिक सौन्दर्य का कला में क्या मूल्य है । कुँअर इस सोच ,विचार और कल्पना को चित्रित व व्यक्त करना चाहते है ,जो कैमरे की मशीनी आँख से छूट जाती है या कैमरा जिसे पकड़ नहीं पता ।

कुँअर को अभी एक लम्बी और सार्थक यात्रा तय करनी है । कला यात्रा की खूबी यह होती है की यह यात्रा कभी ख़त्म नहीं होती । हर पड़ाव व उपलब्धी आगे की यात्रा का बायस होते है ।

सुधीर सक्सेना कवि ,पत्रकार