भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसकी ज़िद-1 / पवन करण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह=स्त्री मेरे भीतर / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:14, 23 अप्रैल 2012 का अवतरण

जूते से निकलकर एड़ी ऐसी टूटी कि नहीं बची
जुड़ने लायक फिर से
कोई था भी नहीं वहाँ जोड़ देता जो उसे
अब मेरे पैर में एक जूता एड़ी वाला था
और एक बिना एड़ीवाला

जब मैं खिसिया कर बैठ गया एक तरफ़
तब वह उठी और उसने अपनी चप्पलों में से
एक की एड़ी तोड़ कर निकाली
और उसे मेरे बिना एड़ी वाले जूते में लगा कर लगी देखने
मैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो
तुम सुनती नहीं क्यों मेरी बात

फिर उसने एक-एक कर चप्पल से
निकली हुई पुरानी कीलों के टेढ़ेपन को किया ठीक
और अपनी चप्पल की एड़ी को
जूते में जोड़ कर कर दिया उसे तैयार

मेरे पैरों अब एड़ीदार जूते थे और उसकी स्थिति
अब मेरी जैसी थी एक पैर में बिना एड़ी वाली चप्पल
फिर उसे ना जाने क्या सूझा उसने अपने
दूसरे पैर की चप्पल की भी एड़ी निकाली
और ठीक वहीं उछाल दी जहाँ
मेर जूते की टूटी एड़ी पड़ी थी

और ऐसा करके वह इतना ख़ुश थी कि बार-बार
मुझे बता रही थी कि इस वक़्त वह ज़मीन पर
बिना एड़ीवाली चप्पल के चल नहीं रही बल्कि फिसल रही है