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उसकी ज़िद-1 / पवन करण

53 bytes added, 07:12, 23 अप्रैल 2012
<Poem>
जूते से निकलकर एड़ी ऐसी टूटी कि नहीं बची
जुड़ने लायक फिर सेकोई था भी नहीं वहाँ जोड़ देता जो उसे
अब मेरे पैर में एक जूता एड़ी वाला था
और एक बिना एड़ीवाला
जब मैं खिसिया कर बैठ गया एक तरफ़,
तब वह उठी और उसने अपनी चप्पलों में से
एक की एड़ी तोड़ कर निकाली
और उसे मेरे बिना एड़ी वाले जूते में लगा कर लगी देखनेमैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो?तुम सुनती नहीं क्यों मेरी बात?
फिर उसने एक-एक कर चप्पल से
निकली हुई पुरानी कीलों के टेढ़ेपन को किया ठीक
और अपनी चप्पल की एड़ी को
जूते में जोड़ कर कर दिया उसे तैयार
मेरे पैरों में अब एड़ीदार जूते थे और उसकी स्थितिअब मेरी जैसी थी एक पैर में बिना एड़ी वाली चप्पलफिर उसे ना जाने क्या सूझा , उसने अपने
दूसरे पैर की चप्पल की भी एड़ी निकाली
और ठीक वहीं उछाल दी जहाँ
मेर जूते की टूटी एड़ी पड़ी थी
और ऐसा करके वह इतना ख़ुश थी कि बार-बार
मुझे बता रही थी कि इस वक़्त वह ज़मीन पर
बिना एड़ीवाली चप्पल के चल नहीं रही , बल्कि फिसल रही है
</poem>
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