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"नज़र मिला न सके उससे / कृष्ण बिहारी 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
 
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
 
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वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।
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मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को,
 
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किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद ।
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ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,
 
ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,
 
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वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।
वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।
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कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की,
 
कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की,
 
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छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद ।
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गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
 
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जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।
 
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।
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श्रेणी: ग़ज़ल

20:10, 8 मई 2012 का अवतरण

}}बिहारी 'नूर'{{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद । वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।

मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को, किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद ।

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें, वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।

कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की, छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद ।

गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का, जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद । श्रेणी: ग़ज़ल