भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नज़र मिला न सके उससे / कृष्ण बिहारी 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
}}बिहारी 'नूर'
+
{{KKGlobal}}
{{KKCatGhazal}}{{KKGlobal}}
+
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=कृष्ण
+
|रचनाकार=कृष्ण बिहारी 'नूर'
 +
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
 
 
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
 
नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
 
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।
 
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।
पंक्ति 17: पंक्ति 20:
 
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
 
गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
 
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।
 
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।
श्रेणी: ग़ज़ल
+
<poem>

20:18, 8 मई 2012 का अवतरण


नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।

मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को,
किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद ।

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,
वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।

कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की,
छुपाता सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद ।

गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,
जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।