"प्रथम करी हरि माखन-चोरी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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सूरदास प्रभु कहत प्रेम सौं, ये मेरे ब्रज-लोग ॥<br><br> | सूरदास प्रभु कहत प्रेम सौं, ये मेरे ब्रज-लोग ॥<br><br> | ||
− | भावार्थ :-- | + | भावार्थ :-- श्यामसुन्दर ने पहली बार मक्खन की चोरी की और इस प्रकार गोपिका के मन की इच्छा पूरी करके स्वयं व्रज की गलियों में भाग गये । अब श्याम मन में यही विचार करने लगे कि `मैंने तो व्रजवासियों को आनन्द देने के लिये ही गोकुल में जन्म लिया है; अतः(सबको आनन्द देने के लिये) व्रज के प्रत्येक घर में जाऊँगा और सबके यहाँ मक्खन खाऊँगा मैया यशोदा तो मुझे (निरा) बालक समझती हैं, गोपियों से मिलकर उनके प्रेम-रस का उपभोग करूँगा ।' सूरदास जी कहते हैं - मेरे स्वामी प्रेमपूर्वक कह रहे हैं कि `ये व्रज के लोग तो मेरे निज जन |
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10:03, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण
राग बिलावल
प्रथम करी हरि माखन-चोरी ।
ग्वालिनि मन इच्छा करि पूरन, आपु भजे-खोरी ॥
मन मैं यहै बिचार करत हरि, ब्रज घर-घर सब जाउँ ।
गोकुल जनम लियौ सुख कारन, सब कैं माखन खाउँ ॥
बालरूप जसुमति मोहि जानै, गोपिनि मिलि सुख-भोग ।
सूरदास प्रभु कहत प्रेम सौं, ये मेरे ब्रज-लोग ॥
भावार्थ :-- श्यामसुन्दर ने पहली बार मक्खन की चोरी की और इस प्रकार गोपिका के मन की इच्छा पूरी करके स्वयं व्रज की गलियों में भाग गये । अब श्याम मन में यही विचार करने लगे कि `मैंने तो व्रजवासियों को आनन्द देने के लिये ही गोकुल में जन्म लिया है; अतः(सबको आनन्द देने के लिये) व्रज के प्रत्येक घर में जाऊँगा और सबके यहाँ मक्खन खाऊँगा मैया यशोदा तो मुझे (निरा) बालक समझती हैं, गोपियों से मिलकर उनके प्रेम-रस का उपभोग करूँगा ।' सूरदास जी कहते हैं - मेरे स्वामी प्रेमपूर्वक कह रहे हैं कि `ये व्रज के लोग तो मेरे निज जन हैं ।'