"मेरे सात जनम (सामान्य परिचय) / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
छो (मेरे सात जनम (हाइकु-संग्रह) / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का नाम बदलकर [[मेरे सात जनम (सामान्य परिच...) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | *[[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु]]' ने इस संग्रह में अपने जून 1986 से फ़रवरी 2011 तक 494 हाइकु संगृहीत किए हैं ।आपने कहा है | |
− | ‘हिमांशु’जी के मन्तव्य के अनुसार | + | -“ कोई विशिष्ट गाँव ,शहर या जिला किसी विधा का स्कूल नहीं हो सकता।हमें इस कबिलाई सोच और संकीर्णता से उबरना चाहिए । सहृदय रचनाकार अगर मेरठ या फ़रीदाबाद का हो तो उसे औरों से कमतर रचनाकार नहीं कहा जा सकता । जो प्रामाणिक अनुभूतिजन्य रचेगा , उसी का रचा हुआ रसज्ञों को रुचेगा और वही इस साहित्य धारा में बचेगा भी । प्रसिद्ध *हाइकुकार डॉ.[[सुधा गुप्ता ]] के अनुसार - |
− | आओ बुनेंगे | + | ‘हिमांशु’जी के मन्तव्य के अनुसार ’ |
− | अँधेरे हटा | + | पके आम से |
− | नदिया भरे | + | सहज चुए रस |
− | आँधियों को चुनौती: | + | हाइकु वैसे |
− | आँधियों का क्या | + | अर्थात् ‘सहज काव्य-रस’ हाइकुकार शीर्ष स्थान देता है । |
− | + | *‘मेरे सात जनम’ हाइकु-संग्रह सात खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड का शीर्षक है -‘उजाला बहे’। प्रथम हाइकु में वाणी -वन्दना करके हाइकुकार भाव-भीनी ज्योति-अर्चना आरम्भ करता है। वस्तुत: यह खण्ड आलोक को समर्पित है! अन्धकार से त्रस्त मानवता के लिए शुभ सन्देश ,विश्वास से लबालब भरा आश्वासन और आह्वान सभी कुछ एक साथ है यहाँ- | |
− | मैं नहीं | + | आओ बुनेंगे |
− | मरने के सौ | + | उजाले की चादर |
− | काँटे जो मिले | + | भावों से भर |
+ | |||
+ | अँधेरे हटा | ||
+ | उगाएँगे सूरज | ||
+ | हर आँगन | ||
+ | |||
+ | नदिया भरे | ||
+ | धरा से नभ तक | ||
+ | उजाला बहे | ||
+ | |||
+ | *आँधियों को चुनौती: | ||
+ | आँधियों का क्या | ||
+ | बुझाएँगी वे दीप | ||
+ | हमें जलाना | ||
+ | *संग्रह का दूसरा खण्ड ‘नभ के पार’ कवि की अदम्य जिजीविषा और संघर्ष करने की जुझारू प्रवृत्ति को रेखांकित करता है : | ||
+ | मैं नहीं हार | ||
+ | है साथ न सूरज | ||
+ | चाँद न तारा | ||
+ | |||
+ | मरने के सौ | ||
+ | तो हज़ार बहाने | ||
+ | हैं जीवन के | ||
+ | |||
+ | काँटे जो मिले | ||
+ | जीवन के गुलाब | ||
+ | उन्हीं से खिले |
21:52, 10 मई 2012 का अवतरण
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने इस संग्रह में अपने जून 1986 से फ़रवरी 2011 तक 494 हाइकु संगृहीत किए हैं ।आपने कहा है
-“ कोई विशिष्ट गाँव ,शहर या जिला किसी विधा का स्कूल नहीं हो सकता।हमें इस कबिलाई सोच और संकीर्णता से उबरना चाहिए । सहृदय रचनाकार अगर मेरठ या फ़रीदाबाद का हो तो उसे औरों से कमतर रचनाकार नहीं कहा जा सकता । जो प्रामाणिक अनुभूतिजन्य रचेगा , उसी का रचा हुआ रसज्ञों को रुचेगा और वही इस साहित्य धारा में बचेगा भी । प्रसिद्ध *हाइकुकार डॉ.सुधा गुप्ता के अनुसार -
‘हिमांशु’जी के मन्तव्य के अनुसार ’
पके आम से
सहज चुए रस
हाइकु वैसे
अर्थात् ‘सहज काव्य-रस’ हाइकुकार शीर्ष स्थान देता है ।
- ‘मेरे सात जनम’ हाइकु-संग्रह सात खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड का शीर्षक है -‘उजाला बहे’। प्रथम हाइकु में वाणी -वन्दना करके हाइकुकार भाव-भीनी ज्योति-अर्चना आरम्भ करता है। वस्तुत: यह खण्ड आलोक को समर्पित है! अन्धकार से त्रस्त मानवता के लिए शुभ सन्देश ,विश्वास से लबालब भरा आश्वासन और आह्वान सभी कुछ एक साथ है यहाँ-
आओ बुनेंगे
उजाले की चादर
भावों से भर
अँधेरे हटा
उगाएँगे सूरज
हर आँगन
नदिया भरे
धरा से नभ तक
उजाला बहे
- आँधियों को चुनौती:
आँधियों का क्या
बुझाएँगी वे दीप
हमें जलाना
- संग्रह का दूसरा खण्ड ‘नभ के पार’ कवि की अदम्य जिजीविषा और संघर्ष करने की जुझारू प्रवृत्ति को रेखांकित करता है :
मैं नहीं हार
है साथ न सूरज
चाँद न तारा
मरने के सौ
तो हज़ार बहाने
हैं जीवन के
काँटे जो मिले
जीवन के गुलाब
उन्हीं से खिले