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"यदि कोई पूछे तो (सामान्य परिचय) / मासाओका शिकि" के अवतरणों में अंतर

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*[[हाइकु]] कविता अब भारतवर्ष में काफी चर्चित है।  डॉ० [[अंजली देवधर]] ने [[मासाओका शीकी]] की जीवनी, उनके संस्मरण, उनके दुर्लभ चित्र तथा उनके चुने हुए हाइकुओं का अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी अनुवाद करके तथा उसे [[यदि कोई पूछे तो / मासाओका शिकि|यदि कोई पूछे तो]]..... शीर्षक से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करवाकर एक अमूल्य भेंट हिन्दी हाइकुकारों को दी है। 'मात्सुयामा म्यूनिसिपल शीकी किनन म्यूज़ियम` के बारे में भी भारत में रहने वाले हाइकुकारों को महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।  
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*[[हाइकु]] कविता अब भारतवर्ष में काफी चर्चित है।  डॉ० [[अंजली देवधर]] ने [[मासाओका शिकि]] की जीवनी, उनके संस्मरण, उनके दुर्लभ चित्र तथा उनके चुने हुए हाइकुओं का अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी अनुवाद करके तथा उसे [[यदि कोई पूछे तो / मासाओका शिकि|यदि कोई पूछे तो]]..... शीर्षक से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करवाकर एक अमूल्य भेंट हिन्दी हाइकुकारों को दी है। 'मात्सुयामा म्यूनिसिपल शीकी किनन म्यूज़ियम` के बारे में भी भारत में रहने वाले हाइकुकारों को महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।  
 
*म्यूज़ियम ने यह कार्य डॉ० अंजली देवधर को करने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से हाइकुकारों, हाइकु पाठकों तथा हाइकु के जिज्ञासुओं व शोधार्थियों पर बड़ा उपकार किया है।
 
*म्यूज़ियम ने यह कार्य डॉ० अंजली देवधर को करने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से हाइकुकारों, हाइकु पाठकों तथा हाइकु के जिज्ञासुओं व शोधार्थियों पर बड़ा उपकार किया है।
*हाइकु के अनवाद के साथ-साथ हाइकु विशेष की रचना का समय, हाइकुकार शीकी की अवस्था (हाइकु की रचना के समय), हाइकु रचना के समय हाइकुकार की मन:स्थिति और तत्कालीन परिस्थितियाँ इन सब की जानकारी प्रत्येक हाइकु के साथ दी गई है। इससे हाइकु अत्यन्त सम्प्रेषणीय हो गए हैं और प्रत्येक हाइकु के साथ पाठक शीकी की मनोदशा के साथ उसी भावभूमि पर शीकी से स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है। यह सब यदि किसी अनूदित पुस्तक को पढ़कर संभव है तो अनुवाद की सफलता का इससे बड़ा और कोई प्रमाण भला क्या होगा?
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*हाइकु के अनवाद के साथ-साथ हाइकु विशेष की रचना का समय, हाइकुकार शीकी की अवस्था (हाइकु की रचना के समय), हाइकु रचना के समय हाइकुकार की मन:स्थिति और तत्कालीन परिस्थितियाँ इन सब की जानकारी प्रत्येक हाइकु के साथ दी गई है। इससे [[हाइकु]] अत्यन्त सम्प्रेषणीय हो गए हैं और प्रत्येक हाइकु के साथ पाठक शीकी की मनोदशा के साथ उसी भावभूमि पर शीकी से स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है। यह सब यदि किसी अनूदित पुस्तक को पढ़कर संभव है तो अनुवाद की सफलता का इससे बड़ा और कोई प्रमाण भला क्या होगा?
*जापानी हाइकु और हिन्दी हाइकु के मध्य भाषा का जो बड़ा पहाड़ खड़ा हुआ है उसके मध्य डॉ० अंजली जी की यह पुस्तक खिड़की खोलने का कार्य करती है, भविष्य में यह उम्मीद की जा सकती है कि यह खिड़की बड़े दरवाजे का आकार ले सकेगी और शीकी द्वारा अपने सदा जीवित रहने (कवि कभी नहीं मरता जब तक उसके द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने वाले पाठक हैं) की गर्वोक्ति हिन्दी हाइकुकारों के मध्य भी संचरित हो सकेगी
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*जापानी हाइकु और हिन्दी हाइकु के मध्य भाषा का जो बड़ा पहाड़ खड़ा हुआ है उसके मध्य डॉ० अंजली जी की यह पुस्तक खिड़की खोलने का कार्य करती है, भविष्य में यह उम्मीद की जा सकती है कि यह खिड़की बड़े दरवाजे का आकार ले सकेगी और शीकी द्वारा अपने सदा जीवित रहने (कवि कभी नहीं मरता जब तक उसके द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने वाले पाठक हैं) की गर्वोक्ति हिन्दी हाइकुकारों के मध्य भी संचरित हो सकेगी।
 
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डॉ॰ [[अंजली देवधर]]
 
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20:57, 11 मई 2012 के समय का अवतरण

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»  यदि कोई पूछे तो (सामान्य परिचय)
  • हाइकु कविता अब भारतवर्ष में काफी चर्चित है। डॉ० अंजली देवधर ने मासाओका शिकि की जीवनी, उनके संस्मरण, उनके दुर्लभ चित्र तथा उनके चुने हुए हाइकुओं का अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी अनुवाद करके तथा उसे यदि कोई पूछे तो..... शीर्षक से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करवाकर एक अमूल्य भेंट हिन्दी हाइकुकारों को दी है। 'मात्सुयामा म्यूनिसिपल शीकी किनन म्यूज़ियम` के बारे में भी भारत में रहने वाले हाइकुकारों को महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।
  • म्यूज़ियम ने यह कार्य डॉ० अंजली देवधर को करने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से हाइकुकारों, हाइकु पाठकों तथा हाइकु के जिज्ञासुओं व शोधार्थियों पर बड़ा उपकार किया है।
  • हाइकु के अनवाद के साथ-साथ हाइकु विशेष की रचना का समय, हाइकुकार शीकी की अवस्था (हाइकु की रचना के समय), हाइकु रचना के समय हाइकुकार की मन:स्थिति और तत्कालीन परिस्थितियाँ इन सब की जानकारी प्रत्येक हाइकु के साथ दी गई है। इससे हाइकु अत्यन्त सम्प्रेषणीय हो गए हैं और प्रत्येक हाइकु के साथ पाठक शीकी की मनोदशा के साथ उसी भावभूमि पर शीकी से स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है। यह सब यदि किसी अनूदित पुस्तक को पढ़कर संभव है तो अनुवाद की सफलता का इससे बड़ा और कोई प्रमाण भला क्या होगा?
  • जापानी हाइकु और हिन्दी हाइकु के मध्य भाषा का जो बड़ा पहाड़ खड़ा हुआ है उसके मध्य डॉ० अंजली जी की यह पुस्तक खिड़की खोलने का कार्य करती है, भविष्य में यह उम्मीद की जा सकती है कि यह खिड़की बड़े दरवाजे का आकार ले सकेगी और शीकी द्वारा अपने सदा जीवित रहने (कवि कभी नहीं मरता जब तक उसके द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने वाले पाठक हैं) की गर्वोक्ति हिन्दी हाइकुकारों के मध्य भी संचरित हो सकेगी।

अनुवादक डॉ॰ अंजली देवधर