भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डायन सरकार / रांगेय राघव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रांगेय राघव }} डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दांतों ...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रांगेय राघव
 
|रचनाकार=रांगेय राघव
 
}}
 
}}
 +
<poem>
 +
डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
 +
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।
  
डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दांतों से, <br>
+
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी,
छीन-गरीबों के मुहं का है, कौर दुरंगी घातों से ।<br>
+
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,
  
हरियाली में आग लगी है, नदी नदी है खौल उठी,<br>
+
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,<br>
+
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे ।।
 
+
</poem>
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर बाजार उठे,<br>
+
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे ।।<br>
+

22:50, 17 मई 2012 के समय का अवतरण

डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।

हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी,
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,

इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे ।।