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Kavita Kosh से
खुला है तन
(4)
आँख मूँद केमूँदके
पीते हैं हलाहल
कैसा सकून?
(5)
पीड़ा के पेड़
नये नकोर
(7)
पाप -पुन्न की
अपनी परिभाषा
आशा ही आशा
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