"गर्मी-2 / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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हवाख़ोरी को चली | हवाख़ोरी को चली | ||
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काला हुआ हिरन | काला हुआ हिरन | ||
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जेठ की गर्मी | जेठ की गर्मी | ||
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बरगद के नीचे | बरगद के नीचे | ||
सुस्तात्ती हवा | सुस्तात्ती हवा | ||
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गर्मी की रात | गर्मी की रात | ||
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धूल की मेहमानी | धूल की मेहमानी | ||
करते थके | करते थके | ||
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पका सूरज | पका सूरज |
17:12, 18 मई 2012 का अवतरण
1
फिरते पत्ते
जूते चटकाते-से
काम न धाम
2
धूप से डर
पीली छतरी खोले
खड़ा वैशाख
3
नदिया सूखी
तपाता है सूरज
प्यासे हैं पंछी
4
लू के थपेड़े
औ’ धूप के अंगार
जेठ गुस्साया
5
गर्म बेचैन,
धूपीले अनमने
उबाऊ दिन
6
अकेली ऊबी
हवाख़ोरी को चली
तपती शाम
7
सूरज खफ़ा
चलीं किरन बर्छी
धूप के तीर
8
बाँसों के वन
तनिक सी भूल स
लगती आग
9
तपा सूरज
जले दिल पेड़ों के
बिलखी धरा
10
जानलेवा लू
इश्कपेंचा के फूल
लौटे धूल
11
कूकी जो पिकी
‘छन्न दोपहरिया
काँच-सी टूटी
12
धूप ने छला
काला हुआ हिरन
पानी न मिला
13
जेठ की गर्मी
सब झुलस रहे
मोगरा खिला
14
कूकी कोयल
चीरा-सा लगा गई
टपका लहू
15
बन्दगी , दुआ
सब कुछ भूले हैं
पसीना चुआ
16
वनों की आग
राष्ट्रीय सम्पत्ति को
करती राख
17
धूप से जली
क्षीण कटि नदिया
गुम-सुम-सी
18
ढंग अनूप
बरगद के नीचे
सुस्तात्ती हवा
19
गर्मी की रात
जलता तन-मन
बात-बेबात
20
नहीं बोलती
जंगल में डोलती
अकेली हवा
21
कलेजे बसा
जले पेड़ों का दु:ख
रोगिणी हवा
22
घर-आँगन
धूल की मेहमानी
करते थके
23
पका सूरज
खेतों में फैले पड़े
गेहूँ के थान
24
भभक उठी
आँवाँ बनी धरती
पकते जीव
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