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"हाइकु 121-140/ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ 
 
  
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<poem>
 
121
 
निर्मोही जग
 
सदा पीर ही बाँटे
 
सबको काटे ।
 
122
 
प्राणों का पंछी
 
अकेला उड़ चला
 
साँझ हो गई ।
 
123
 
क्रौंच  सा मन
 
व्यथा-बाण-आहत
 
करो जतन ।
 
124
 
सुधा कानों में
 
घोलते  हैं शिशु के
 
तुतले बोल ।
 
125
 
इन नैनों  से
 
आज अमृत चुआ
 
ये कैसे  छुआ ?
 
126
 
माथा तुम्हारा
 
धरा पर चाँद-सा
 
उजाला किए ।
 
127
 
नैन मृगी से
 
छलके हैं जबसे
 
अमृत पिए ।
 
128
 
मन का तम
 
मिटाते रहे तेरे
 
मन के दिए ।
 
129
 
होंठों से झरे
 
पाटल से ये बोल
 
सौरभ -भरे ।
 
130
 
कोई न भाव
 
ठहरता आकर
 
मन के गाँव
 
131
 
हमको मिले
 
अधूरे ही सपने
 
न थे अपने ।
 
132
 
धोखा दिया क्यों
 
हम तुम्हारे कभी
 
मीत नहीं थे ।
 
133
 
मिली न पाती
 
संदेसा दे गया था
 
तेरा ये मन ।
 
134
 
मुझे बरोसा
 
तुम पर इतना
 
नभ जितना ।
 
135
 
मुझे वर दो
 
आँचल में अपना
 
दुख भर दो ।
 
136
 
तुम्हारे दर्द
 
अँजुरी से पी लूँगा
 
युगों जी लूँगा ।
 
137
 
याद करूँ मैं
 
तुमको कैसे , जब
 
भूला ही नहीं ।
 
138
 
किसने देखा
 
कल कब , क्या होगा
 
भाग का लेखा ।
 
139
 
देश है छूटा
 
बेगानों मे खोकर
 
सपना टूटा ।
 
140
 
काम न आए
 
थे कभी हमारे जो
 
दाएँ व बाएँ ।
 
-0-
 
</poem>
 

18:57, 18 मई 2012 के समय का अवतरण