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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }}[[Category:हाइकु]]<poem>81तुम जो बोलींबातों के दरिया मेंमिसरी घोली ।82समेटा गया -न सुधियों का जाल सिहरा ताल ।83छोटी-सी चूकअधूरा -सा जीवन बाकी थी हूक ।84दूर है गाँवबची केवल धूप कहीं न छाँव ।85वही है मीत रोम -रोम में बसीजिसके प्रीत ।86बीते बरसोंअभी तक मन में खिली सरसों ।87परदेस मेंउठी तुमको पीरमैं था अधीर ।88माँगी तुमने जब रब से दुआमन था चुआ ।89माथा जो छुआहृदय-सागर मेंजाने क्या हुआ ।90जागी उमंगबज उठी हो जैसे जलतरंग ।91समय गया कुछ पल ठहरउठी लहर ।92भीगे थे कूल लहरों के आँगन बिछे दुकूल ।93मन की मीनसुधियों -सी घिरतीरही तिरती ।94व्याकुल मनदो पल का मिलन यही जीवन ।95जीभर जियोमिला जो प्रेमरसबाँट दो , पियो ।96नयन-जल पिंघला गई कोईपीर अतल ।97पोंछो ये पलकेंमोतियों भरे हैं येसागर छलके । 98लुटाओ नहीं अनमोला खज़ानामुश्किल पाना ।99गंगा की धार है बहनों का प्यारबही बयार। 100पावन मन जैसे नील गगन नहीं है छोर । -0-</poem>