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"समाजवाद / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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कोई न रहे दुःखी
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अभाव ग्रस्त
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जीवनानन्द: सभी
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सह-भागी हों!
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आज़ाद हुए बीते
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साठ बरस
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अब देखो दो दृश्यः
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‘खिलौना’ बच्चे
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कार में स्कूल जाते
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सजे-सँवरे
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चीथड़े लिपटे हैं
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रिरिया रहा
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अभागा कोई बच्चा
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फेंकते खेल रहे
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धनिक-बच्चे
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रो-रो कर माँगता
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निरुपाय बालक
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ए.सी. घरों में
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‘कुश्तम्कुश्ता’ खेलते
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रईसज़ादे
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कहीं फ़ुटपाथ पे
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काँपता बच्चा
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ओलों और वर्षा में
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कार रेस खेलते
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धन -कुबेर
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कुछ की सुबह है
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कचरा-ढेर
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ख़ाली बोरा व डण्डी
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राम की माया
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राम तक पहुँची
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राम है भूखा
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कैसा गुल खिलाया
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समाजवाद आया!
  
 
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15:52, 21 मई 2012 का अवतरण

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‘समाजवाद’
आज़ाद भारत ने
नारा दिया था
‘समान अधिकार’
सब सुखी हों
‘समान अवसर’
सब को मिले
प्रगति के पथ पै
सब ही चलें
अनिवार्य सुविधा
जीने-खाने की
देखा एक सपना
कर्णधारों ने
कोई न रहे दुःखी
अभाव ग्रस्त
जीवनानन्द: सभी
सह-भागी हों!

आज़ाद हुए बीते
साठ बरस
अब देखो दो दृश्यः
‘खिलौना’ बच्चे
कार में स्कूल जाते
सजे-सँवरे
चीथड़े लिपटे हैं
रिरिया रहा
अभागा कोई बच्चा

बर्गर, पिज्जा
फेंकते खेल रहे
धनिक-बच्चे
रो-रो कर माँगता
रोटी-टुकड़ा
निरुपाय बालक
ए.सी. घरों में
‘कुश्तम्कुश्ता’ खेलते
रईसज़ादे
कहीं फ़ुटपाथ पे
काँपता बच्चा
ओलों और वर्षा में

कम्प्यूटर पे
कार रेस खेलते
धन -कुबेर
कुछ की सुबह है
कचरा-ढेर
ख़ाली बोरा व डण्डी


राम की माया
राम तक पहुँची
राम है भूखा
कैसा गुल खिलाया
समाजवाद आया!

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