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"समाजवाद / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार= सुधा गुप्ता   
 
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19:29, 21 मई 2012 का अवतरण

‘समाजवाद’
आज़ाद भारत ने
नारा दिया था
‘समान अधिकार’
सब सुखी हों
‘समान अवसर’
सब को मिले
प्रगति के पथ पै
सब ही चलें
अनिवार्य सुविधा
जीने-खाने की
देखा एक सपना
कर्णधारों ने
कोई न रहे दुःखी
अभाव ग्रस्त
जीवनानन्द: सभी
सह-भागी हों!

आज़ाद हुए बीते
साठ बरस
अब देखो दो दृश्यः
‘खिलौना’ बच्चे
कार में स्कूल जाते
सजे-सँवरे
चीथड़े लिपटे हैं
रिरिया रहा
अभागा कोई बच्चा

बर्गर, पिज्जा
फेंकते खेल रहे
धनिक-बच्चे
रो-रो कर माँगता
रोटी-टुकड़ा
निरुपाय बालक
ए.सी. घरों में
‘कुश्तम्कुश्ता’ खेलते
रईसज़ादे
कहीं फ़ुटपाथ पे
काँपता बच्चा
ओलों और वर्षा में

कम्प्यूटर पे
कार रेस खेलते
धन -कुबेर
कुछ की सुबह है
कचरा-ढेर
ख़ाली बोरा व डण्डी


राम की माया
राम तक पहुँची
राम है भूखा
कैसा गुल खिलाया
समाजवाद आया!

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