"सुनि मैया, मैं तौ पय पीवौं, मोहि अधिक रुचि आवै री / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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राग आसावरी
सुनि मैया, मैं तौ पय पीवौं, मोहि अधिक रुचि आवै री ।
आजु सबारैं धेनु दुही मैं, वहै दूध मोहि प्यावै री ॥
और धेनु कौ दूध न पीवौं, जो करि कोटि बनावै री ।
जननी कहति दूध धौरी कौ, पुनि-पुनि सौंह करावै री ॥
तुम तैं मोहि और को प्यारौ, बारंबार मनावै री ।
सूर स्यामकौं पय धौरी कौ माता हित सौं ल्यावै री ॥
भावार्थ :-- (मोहन बोले-) मैया ! सुन, मैं तभी दूध पीऊँगा और तभी वह मुझे अत्यन्त रुचिकर लगेगा, जब आज सबेरे मैने जो गाय दुही थी, उसी का दूध यदि तू मुझे पिलाये । चाहे तू करोड़ों उपाय करके बनाये (दूध को गाढ़ा मीठा आदि करे) तो भी दूसरी गायका दूध नहीं पीऊँगा ।' माता कहती हैं- यह उसी धवला का दूध है, (इतने पर भी मानते नहीं )बार-बार शपथ करवाते हैं । माता बार-बार (यह कहकर) मनाती हैं -` मुझे तुमसे अधिक प्यारा और कौन है (जिसे देने के लिये धवला का दूध रखूँगी) ।' सूरदास जी कहते हैं कि माता श्यामसुन्दर के लिये बड़े प्रेम से धवला गाय का दूध लाती हैं ।