"आ गये किस द्वीप में हम / सोम ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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जंगली एहसास के दो हाथ | जंगली एहसास के दो हाथ |
21:38, 21 मई 2012 का अवतरण
आ गये किस द्वीप में हम
देह पत्थर हो गई
सर्पगंधा एक डाकिन
साथ में फिरने लगी
नाम लिख आए जहाँ हम
गुनगुनाती खुशबुओं से
ढह गये वे बुर्ज
कुछ टूटे कंगूरे रह गए
बढ़ चले हैं पाँव
पीछे को बुलाती सीढ़ियों पर
हो गये पूरे कथानक
हम अधूरे रह गए
प्रश्न-वृक्षों की उठी शाखें हुईं नंगी
कि गुमसूँ पर्वतों पर
बर्फ की ताज़ा रुई गिरने लगी
पड़ गए जल में रवे
लहरें थमी हैं
घूमकर लौटीं नहीं
वे चुंबनो कीली हुई ज़िंदा हवाएँ
शीला खिसका कर मुहाने से
बुलाने लग गई हैं
वृक्ष तक जल से भरी
अंधी गुफाएँ
जिस सतह पर डूब कर
उछली नही हंसापरी वह
सोनरंगी मरी मछली
काँपकर तिरने लगी
अब नहीं
वे चुंबको- गुज़री हुई सह यात्राएँ
सूर्य -मंत्रों को मिला
कोलाहलो का साथ
कमल पत्ते पर रखी मणि को
उठने लग गये हैं
जंगली एहसास के दो हाथ
मारती है रक्त के छींटे
लिए टूटे हुए परमाणु - क्रम जो
वह घटा
हेमंत के आकाश में
घिरने लगी
सर्पगंधा एक डाकिन
साथ में फिरने लगी