भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गिलहरी / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
अगड़म-बगड़म लाती। | अगड़म-बगड़म लाती। | ||
गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | ||
− | |||
− | |||
ठीक रसोईघर के पीछे | ठीक रसोईघर के पीछे | ||
− | |||
शीशे की खिड़की के नीचे | शीशे की खिड़की के नीचे | ||
− | |||
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर | `एस्किमो' सा गोल-गोल घर | ||
− | |||
चुन-चुन खूब बनाती। | चुन-चुन खूब बनाती। | ||
− | |||
गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | ||
21:46, 21 मई 2012 का अवतरण
गिलहरी दिन भर आती-जाती
फटे-पुराने कपड़े लत्ते
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
ठीक रसोईघर के पीछे
शीशे की खिड़की के नीचे
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर
चुन-चुन खूब बनाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
ठीक अँगूठे जिनते मोटे
बड़े प्यार से उन दोनों को
अपना दूध पिलाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
खिड़की पर जब कौआ आता
बच्चे खाने को ललचाता
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
करके उसे डराती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
भोली-भाली बहुत लजीली
छोटी-सी प्यारी शरमीली
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतलाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।