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"भाव-कलश (ताँका-संग्रह) / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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डॉ0 [[भावना कुँअर]] की संवेदना निराली है । अपने गाँव के नीम के पेड़ की निबौंलियों को अपनी यादों के आईने में देखती है -
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[[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] और डॉ0 [[भावना कुँअर ]] ने इस संकलन का सम्पादन किया है । दोनों ने  ताँकाकारों का  मनोबल बढ़ाकर  उनको और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी है । आपका मानना है कि इस जग में बबूल ज्यादा हैं और चन्दन कम है, इसीलिए ओ मेरे मन तू गम न करना -
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'''दु:ख न कर
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मेरे पागल मन
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यही जीवन
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हैं बबूल बहुत
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कम यहाँ चन्दन ।'''
  
नीम का पेड़
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बस एक आसान -सा काम तुझे करना है , नफरत को विदा कर , ताकि ईद का चाँद तेरे मन-आकाश को प्रतिदिन रौशन करता रहे। इस [[हाइकु|ताँका]] में ईद के चाँद का सांस्कृतिक प्रयोग देखने योग्य है -  
बहुत शरमाए
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'''ईद का चाँद
नटखट-सी
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हर रोज़ बढ़े ज्यों,
निबौंलियाँ उसको
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सुख भी बढ़ें
खूब गुदगुगाएँ
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रोज़ गगन चढ़ें
 
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दिल रौशन करें ।'''
तो उन्हें कहीं आँगन में खेलती धूप में माँ अनाज सुखाती दिखाई देती है ;जिसमें कबूतरी का समावेश उसे मार्मिक बना देता है-
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साथ ही जीवन के कटु यथार्थ की ओर इशारा करते हुए शातिर लोगों के शब्दों की मिठास के लेप में छुपे ज़हरीले वार से हमें बचने के लिए सावधान करते हैं -
 
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'''शातिर लोग
आज फिर माँ
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मीठा जब बोलते
अनाज़ सुखाएगी
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याद रखो कि
वो कबूतरी
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ज़हर वे घोलते
पल भर में सब
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मुस्कान बिखेरते ।'''
चट कर जाएगी
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भावना जी के [[हाइकु|ताँका]] का हर एक शब्द पाठक के मर्म को छू लेता है । जीवन भर हर एक व्यक्ति किसी न किसी अभाव से  व्यथित रहता है ; सम्भव: यही जीवन का सत्य  है-
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आँसू गठरी
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खुलकर बिखरी
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हर कोशिश
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मैं समेटती जाऊँ
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पर बाँध न पाऊँ
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इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है।
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15:59, 22 मई 2012 के समय का अवतरण

 

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' और डॉ0 भावना कुँअर ने इस संकलन का सम्पादन किया है । दोनों ने ताँकाकारों का मनोबल बढ़ाकर उनको और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी है । आपका मानना है कि इस जग में बबूल ज्यादा हैं और चन्दन कम है, इसीलिए ओ मेरे मन तू गम न करना -
दु:ख न कर
मेरे पागल मन
यही जीवन
हैं बबूल बहुत
कम यहाँ चन्दन ।

बस एक आसान -सा काम तुझे करना है , नफरत को विदा कर , ताकि ईद का चाँद तेरे मन-आकाश को प्रतिदिन रौशन करता रहे। इस ताँका में ईद के चाँद का सांस्कृतिक प्रयोग देखने योग्य है -
ईद का चाँद
हर रोज़ बढ़े ज्यों,
सुख भी बढ़ें
रोज़ गगन चढ़ें
दिल रौशन करें ।
साथ ही जीवन के कटु यथार्थ की ओर इशारा करते हुए शातिर लोगों के शब्दों की मिठास के लेप में छुपे ज़हरीले वार से हमें बचने के लिए सावधान करते हैं -
शातिर लोग
मीठा जब बोलते
याद रखो कि
ज़हर वे घोलते
मुस्कान बिखेरते ।