"भाव-कलश (ताँका-संग्रह) / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
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+ | मेरे पागल मन | ||
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+ | कम यहाँ चन्दन ।''' | ||
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− | + | '''ईद का चाँद | |
− | + | हर रोज़ बढ़े ज्यों, | |
− | + | सुख भी बढ़ें | |
− | + | रोज़ गगन चढ़ें | |
− | + | दिल रौशन करें ।''' | |
− | + | साथ ही जीवन के कटु यथार्थ की ओर इशारा करते हुए शातिर लोगों के शब्दों की मिठास के लेप में छुपे ज़हरीले वार से हमें बचने के लिए सावधान करते हैं - | |
− | + | '''शातिर लोग | |
− | + | मीठा जब बोलते | |
− | + | याद रखो कि | |
− | + | ज़हर वे घोलते | |
− | + | मुस्कान बिखेरते ।''' | |
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15:59, 22 मई 2012 के समय का अवतरण
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' और डॉ0 भावना कुँअर ने इस संकलन का सम्पादन किया है । दोनों ने ताँकाकारों का मनोबल बढ़ाकर उनको और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी है । आपका मानना है कि इस जग में बबूल ज्यादा हैं और चन्दन कम है, इसीलिए ओ मेरे मन तू गम न करना -
दु:ख न कर
मेरे पागल मन
यही जीवन
हैं बबूल बहुत
कम यहाँ चन्दन ।
बस एक आसान -सा काम तुझे करना है , नफरत को विदा कर , ताकि ईद का चाँद तेरे मन-आकाश को प्रतिदिन रौशन करता रहे। इस ताँका में ईद के चाँद का सांस्कृतिक प्रयोग देखने योग्य है -
ईद का चाँद
हर रोज़ बढ़े ज्यों,
सुख भी बढ़ें
रोज़ गगन चढ़ें
दिल रौशन करें ।
साथ ही जीवन के कटु यथार्थ की ओर इशारा करते हुए शातिर लोगों के शब्दों की मिठास के लेप में छुपे ज़हरीले वार से हमें बचने के लिए सावधान करते हैं -
शातिर लोग
मीठा जब बोलते
याद रखो कि
ज़हर वे घोलते
मुस्कान बिखेरते ।