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"नदी / अजेय" के अवतरणों में अंतर

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<poem>इस नदी को देखने लिए
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आप इस के एक दम क़रीब जाएं
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|रचनाकार=अजेय
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<poem>
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एक
  
घिस घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुन्दर
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दोस्त ,
कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर
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मैं यहाँ इस किनारे
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टीले पर चढ़ बैठा
 +
कि तुम्हे उधर सागर की तरफ
 +
बहता हुआ देखूँ.......
 +
मज़ा तो खूब आया
 +
लेकिन पीछे छूट गया !
  
उतरती रही होगी
+
1990
पिछली कितनी ही उठानों पर
+
भुरभुरी पोशाकें इन की
+
कि गुम सुम धूप खा रहीं
+
उकड़ूँ ध्यान मगन
+
और पसरी हुई कोई ठाठ से
+
आज जब उतर चुका है पानी
+
अलग अलग बिछे हुए
+
  पेड़
+
      मवेशी
+
कनस्तर
+
      डिब्बे
+
          लत्ते
+
      ढेले
+
कंकर
+
    रेत .................
+
  
कि नदी के बाहर भी बह रही थीं
+
दो
कुछ नदियाँ शायद
+
उन्हें क़रीब से देखने की ज़रूरत थी. 
+
  
 +
उतरूँ
 +
तुझ में
 +
और तैर जाऊँ
 +
बिन भीगे
 +
उस पार !
  
कुछ बच्चे माला माल हो गए अचानक
+
2004
खंगालते हुए
+
लदे फदे
+
ताज़ा कटे कछार
+
अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन
+
पूरा एक खज़ाना
+
तुम चुन लो अपना एक शंकर
+
और मुट्ठी भर उस के गण
+
मैं कोई बुद्ध देखता हूँ अपने लिए
+
हो सके तो एकाध अनुगामी श्रमण
+
और खेलेंगे भगवान भगवान दिन भर .
+
 
+
ठूँस लें अपनी जेबों में आप भी
+
ये जो बिखरी हुई हैं नैमतें
+
शाम घिरने से पहले वरना
+
वो जो नदी के बाहर है
+
पानी के अलावा
+
जिस की अपनी अलग ही एक हरारत है
+
बहा ले जाएगा गुपचुप अपनी बिछाई हुई चीज़ें
+
आने वाले किसी भी अँधेरे में
+
आप आएं
+
 
+
आप आएं
+
और देख लें इस भरी पूरी नदी को
+
यहाँ एक दम क़रीब आ कर .
+
 
+
2001
+
 
</poem>
 
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13:24, 24 मई 2012 के समय का अवतरण

एक

दोस्त ,
मैं यहाँ इस किनारे
टीले पर चढ़ बैठा
कि तुम्हे उधर सागर की तरफ
बहता हुआ देखूँ.......
मज़ा तो खूब आया
लेकिन पीछे छूट गया !

1990

दो

उतरूँ
तुझ में
और तैर जाऊँ
बिन भीगे
उस पार !

2004