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"वाक़या है या के तेरा जिक्र अफ़सानों में है / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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लुत्फ़ तो सारे का सारा हाशिया ख़ानों में है
 
लुत्फ़ तो सारे का सारा हाशिया ख़ानों में है
  
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क्यों घुमें ये हाथ क्यों जुंबिश तिरे शानों में है
 
क्यों घुमें ये हाथ क्यों जुंबिश तिरे शानों में है
  
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वो बरहना सर हमारे मरसिया ख़्वानों में है
 
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18:45, 25 मई 2012 के समय का अवतरण

वाक़या है या के तेरा ज़िक्र अफ़सानों में है
बात कुछ तो है के तू अख़बार के ख़ानों में है

निस्फ़ शब<ref>आधी रात</ref> तो ग़र्क़ मेरी जमों-पैमानों में है
और बाक़ी जो है वो तस्बीह<ref>जाप की माला</ref>के दानों में है

हम मतन <ref>मूल उद्धरण</ref>पढ़ते रहे लेकिन अब आया ये दिमाग़
लुत्फ़ तो सारे का सारा हाशिया ख़ानों में है

यूँ नहीं, अब इन लबों को भी तो ज़हमत दीजिये
क्यों घुमें ये हाथ क्यों जुंबिश तिरे शानों में है

क्या कहें इसको, सरे मक़तल<ref>वधस्थल</ref>था जो ख़ंजर बकफ़
वो बरहना सर हमारे मरसिया ख़्वानों में है

सर बकफ़<ref>हथेली पर सर</ref>फिरता हूँ शहर में तनहा, के सुन
ख़ौफ़ कैसा जब के वो मेरे निगहबानों में है



शब्दार्थ
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