भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मसलहत खे़ज़ ये रियाकारी / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=हवाओं के साज़ प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:54, 25 मई 2012 के समय का अवतरण

मसलहत ख़ेज़<ref>स्वार्थपूर्ण</ref> ये रियाकारी<ref>दिखावा</ref>
ज़िन्दगानी की नाज़ बरदारी

कै़सरी<ref>बादशाही</ref> तेरी मेरा दश्ते-नज्द<ref>वो जंगल जिसमें मजनूं भटकता था</ref>
अपने-अपने जहाँ की सरदारी

कैसे नादाँ हो काट बैठे हो
एक ही रौ में ज़िन्दगी सारी

हो जो ईमाँ तो बैठता है मियाँ
एक इन्साँ हज़ार पर भारी

कारोबारे जहाँ से घबराकर
कर रहा हूँ जुनूँ की तैयारी

ज़हनो-दिल में चुभन सी रहती है
शायरी है अजीब बीमारी

मुस्कुरा क्या गई वो शोख़ अदा
दिल पे गोया चला गयी आरी



शब्दार्थ
<references/>