भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किया है शायरी का शौक़ फिर क्या यार शरमाना / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=हवाओं के साज़ प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:37, 26 मई 2012 के समय का अवतरण
किया है शायरी का शौक़ फिर क्या यार शरमाना
सुनाना हो ग़ज़ल कोई तो मेरे घर चले आना
ये बस्ती मनचलों की है यहाँ मत बाज़ फरमाना
कहाँ लफ़ड़े में पड़ते हो चलो घर जाओ मौलाना
मैं थक कर सारा अपना बोझ आँखों से बहा देता
मिरे माथे को भी होता अगर इक फूल सा शाना
चलो अब इश्क़ का ये मशअला भी तय ही हो जाये
के शमअ़ कौन है हम में से उर है कौन परवाना
इसी रद्दो-क़दह<ref>असमंजस</ref>में उम्र इस मंजिल को पहुंची है
कभी इकरार कर लेना, कभी इंकार कर जाना
यही दो हादसे इस ज़िंदगी में सब से बढ़कर है
तिरा आँचल सरक पड़नरा, हमारा दिल धड़क जाना
शराबे इश्के-यज़दाँ<ref>ईश्वरीय प्रेम</ref>की ख़ुमारी देखते क्या हो
तुम्हारी वो जो मस्जिद है हमारा है वो मयख़ाना
शब्दार्थ
<references/>