भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुर्कमान गेट / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर ...)
 
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
होंट गोया हैं सूखे पत्तों से ।
 
होंट गोया हैं सूखे पत्तों से ।
  
ख़ामुशी चीखतेहै आँखों से ।
+
ख़ामुशी चीखती है आँखों से ।
  
 
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
 
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

13:01, 30 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण


ओस टपकी है कैसी ज़हरआलूद !

ज़्ख़्म-ता-ज़ख़्म बाग में है जमूद

जो भी गुंचा खिला वो ज़ख़्मी था :

सुर्ख बेशक बहार का था वुज़ूद !

xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

यही अपना मक़ान है, जो कि था ।

हाँ ! यही सायबान है, जो कि था !

होंट गोया हैं सूखे पत्तों से ।

ख़ामुशी चीखती है आँखों से ।

xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

इन्हीं गलियों में थे तो ग़ालिब भी ।

"नींद क्यों रात भर नहीं आती ! ?


ज़मूद=गतिरोध की जड़ता; वुज़ूद=अस्तित्व; सायबान=छानी-छप्पर